हम वर्तमान भारत में हिंदुत्व के लिए दो दावेदारों पर विचार कर रहे हैं एक है सावरकर वादी और एक हैं संघ के लोग।

     हम वर्तमान भारत में हिंदुत्व के लिए दो दावेदारों पर विचार कर रहे हैं एक है सावरकर वादी और एक हैं संघ के लोग। इन दोनों के बीच यद्यपि बहुत सी समानताएं भी दिखती हैं लेकिन एक बहुत बड़ा फर्क है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों के कार्य प्रणाली में बहुत फर्क हो गया है। सावरकर वादी हिंदुत्व की सुरक्षा के लिए दिन-रात चिंतित रहते हैं और संघ हिंदुत्व के विस्तार के लिए। संघ चाहता है कि दुनिया भर में हिंदुत्व का विस्तार हो और उस बिस्तार के लिए गुण प्रधान हिंदुत्व को आगे किया जाए लेकिन सावरकर वादी इस बात के लिए तैयार नहीं है। वे हमेशा यह चाहते हैं कि हिंदुत्व खतरे में है इस बात का नारा लगाया जाए और हिंदुत्व की सुरक्षा के लिए आवश्यकता अनुसार शस्त्र भी रखे जाएं बल प्रयोग भी किया जाए। इस बात से संग नरेंद्र मोदी या हम लोग सहमत नहीं है। क्योंकि सुरक्षा की नीतियां विशेष परिस्थिति में हो लागू होती है विस्तार की नीतियां सामान्य परिस्थितियों में लागू होती है और वर्तमान समय में हिंदुत्व पर खतरा नहीं है इस्लाम पर खतरा है ऐसे वातावरण में हमें विस्तार की नीति ही आगे बढ़ानी चाहिए। मैं अपने सावरकर वादी मित्रों से निवेदन करना चाहता हूं कि वह अब नई परिस्थिति के अनुसार अपनी सोच को बदले हिंदुत्व पर किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है क्योंकि उस खतरे के लिए हमारे देश में एक सरकार है जिसके मुखिया प्रधानमंत्री हैं हमें सरकार पर भरोसा करना चाहिए। बीमारी ठीक होने के बाद दवा जारी रखना हमेशा नुकसान करता है दवा और टॉनिक का अर्थ सावरकर वादियो को समझना चाहिए।