दुनिया में मनुष्य दो प्रकार के होते हैं — संचालक और संचालित।
दुनिया में मनुष्य दो प्रकार के होते हैं — संचालक और संचालित।
संचालक तर्कप्रधान और बुद्धिप्रधान होते हैं, जबकि संचालित भावनाप्रधान होते हैं। संचालक मस्तिष्क का अधिक उपयोग करते हैं, और संचालित हृदय का।
जो संचालक होते हैं, उन्हें किसी भी परिस्थिति में बिना गंभीर विचार किए मृत महापुरुषों की बातों को अंतिम सत्य नहीं मान लेना चाहिए। धर्मग्रंथों की बात भी विचार-विमर्श और तर्क के आधार पर स्वीकार करनी चाहिए — और तभी उसका प्रचार करना चाहिए।
यदि कोई संचालक किसी को सलाह देता है, तो उसे यह सुनिश्चित होना चाहिए कि उसकी बात उसकी जानकारी में सही और सत्य है। जो व्यक्ति मृत महापुरुषों के वचनों को बिना विचार किए समाज के सामने प्रस्तुत करता है, उसे संचालक नहीं कहा जा सकता।
नि:संदेह, संचालितों को भी महापुरुषों की बात विचार करके ही माननी चाहिए। फिर भी, यदि वे किसी जीवित महापुरुष की बात पर श्रद्धा से विश्वास कर लें, तो वह स्वीकार्य हो सकता है; लेकिन मृत महापुरुषों की बात को आंख मूंदकर तब तक नहीं मानना चाहिए, जब तक किसी जीवित महापुरुष द्वारा उसकी पुष्टि न हो जाए।
इसलिए, मेरा आप सब से निवेदन है कि अपने धर्मग्रंथों की बातों को बिना विचार किए समाज के सामने प्रस्तुत करना एक अनुचित आदत है — और हमें इस आदत को अवश्य छोड़ देना चाहिए।
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