लोक संसद या जन संसद
लोक संसद का प्रारूप
प्रस्ताव
(1) वर्तमान लोकसभा के समकक्ष एक लोकसंसद हो। लोकसंसद की सदस्य संख्या, चुनाव प्रणाली तथा समय सीमा वर्तमान लोक सभा के समान हो । चुनाव भी लोकसभा के साथ हो किन्तु चुनाव दलीय आधार पर न होकर निर्दलीय आधार पर हो।
(2) लोक संसद के निम्न कार्य होगें।
(क) लोकपाल समिति का चुनाव
(ख) संसद द्वारा प्रस्तावित संविधान संशोधन पर र्निणय
(ग) सांसद , सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश , मंत्री या राष्ट्रपति के वेतन भत्ते संबंधी प्रस्ताव पर विचार और निर्णय
(घ) किसी सांसद के विरूद्ध उसके निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत सरपंचो के बहुमत से प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव पर विचार और निर्णय
(च) लोकपाल समिति के भ्रष्टाचार के विरूद्ध शिकायत का निर्णय
(छ) व्यक्ति, परिवार ग्राम सभा, जिला सभा, प्रदेश, सरकार तथा केन्द्र सरकार के आपसी संबंधो पर विचार और निर्णय
(ज) अन्य संवैधानिक इकाइयों के बीच किसी प्रकार के आपसी टकराव के न निपटने की स्थिति में विचार और निर्णय
(3) लोक सांसद को कोई वेतन भत्ता नही होगा। बैठक के समय भत्ता प्राप्त होगा।
(4) लोक संसद का कोई कार्यालय या स्टाफ नही होगा । लोकपाल समिति का कार्यालय तथा स्टाफ ही पर्याप्त रहेगें।
(5) यदि किसी प्रस्ताव पर लोकसंसद तथा लोक सभा के बीच अंतिम रूप से टकराव होता है तो उसका निर्णय जनमत संग्रह से होगा।
संविधान के मूल तत्व समाजशास्त्र का विषय है और सामाजिक विचारकों को निष्कर्ष निकालना चाहिये। संविधान की भाषा राजनीतिशास्त्र का विषय है और राजनीतिज्ञ उसे भाषा दे सकते हैं।
भारतीय संविधान के मूल तत्व भी राजनेताओं ने ही तय किए और भाषा भी उन्होंने ही दी। संविधान के मूल तत्व तय करने में समाजशास्त्रियों की कोई भूमिका नहीं रही। या तो अधिवक्ता थे या आंदोलन से निकले राजनीतिज्ञ। संविधान निर्माण में गांधी तक को किनारे रखा गया जो राजनीति और समाजशास्त्र के समन्वय रूप थे। यही कारण था कि राजनेताओं ने संसद को प्रबंधक के स्थान पर अभिरक्षक, कस्टोडियन का स्वरूप दिया। यही नहीं, उन्होंने तो संसद के अभिरक्षक स्वरूप की कोई समय अवधि तय न करके देश के साथ भारी षड़यंत्र किया जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।
देश के समाजशास्त्रिंयों को मिल-जुलकर संविधान के मूल तत्वों पर विचार मंथन करके कुछ निष्कर्ष निकालने चाहिये।
हमारे संविधान निर्माताओं ने पक्षपातपूर्वक राज्य को एकपक्षीय शक्तिशाली बना दिया। अब देश के समाजशास्त्रिंयों को मिलकर राज्य और समाज के अधिकारों की सीमाओं की पुनः व्याख्या का आंदोलन शुरू करना चाहिये।
भारतीय संविधान दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश के संविधान की अपेक्षा बहुत खराब है क्योकि
क जब संसद संविधान के अनुसार ही कार्य करने को बाध्य है तो वही संसद संविधान संशोधन कैसे कर सकती है?
ख संविधान की उद्देश्यिका मे हम भारत के लोग शब्द है। संविधान संशोधन मे भारत के लोगाे की प्रत्यक्ष स्वीकृति आवश्यक है। हम चुनावो मे जो संसद बनाते है वह संविधान के अंतर्गत व्यवस्था के लिये होती है न कि संविधान संशोधन की स्वीकृति । संविधान निर्माताओं ने घपला करके संसद को यह अधिकार लिख दिया।
ग जिस संसद के अंतर्गत कार्यपालिका का नियंत्रण भी हो और विधायिका के संर्पूण अधिकार भी उसी संसद के पास संविधान संशोधन का अधिकार प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है।
घ भारतीय संविधान मे सांसद जन प्रतिनिधि होता है। उसे जनता की ओर से संसद मे अपनी बात रखने का पूरा संवैधानिक अधिकार है। राजनैतिक दलो की मान्यता कानूनी है संवैधानिक नही । ऐसे संवैधानिक अधिकारो को किसी राजनैतिक दल द्वारा ब्हिप जारी करके रोकना असंवैधानिक संविधान संशेधन है। अ राजीव गांधी ने भारत की जनता को एक खतरनाक तोहफा दिया जो दल बदल कानून के रूप मे है। यह कलंक है।
लोक संसद बनाकर आंशिक रूप से संविधान संशोधन व्यवस्था को ठीक कर सकते है।
17 भारत मे संविधान का शासन है। संविधान हमारी संसद के दाये हाथ मे ढाल है और बायी मुठी मे कैद है। हमारा पहला कार्य होना चाहिये कि संविधान रूपी संरक्षक को कैद से मुक्त कराया जाये । हमारी संसद एक ऐसा मंदिर है जिसमे हमारा भगवान कैद है । मंदिर का पुजारी भगवान को कैद मे रखकर उसका दुरूपयोग कर रहा है।
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