भौतिक या नैतिक उन्नति

कुछ सर्वस्वीकृत सिद्धांत हैं-

1 किसी भी व्यक्ति की भौतिक उन्नति का लाभ मुख्य रुप से व्यक्तिगत होता है और नैतिक उत्थान का लाभ समूहगत या सामाजिक ।

2 अधिकारों के लिए चिंता या प्रयत्न भौतिक उन्नति के उद्देश्य से किये जाते है और कर्तव्यों का प्रयत्न नैतिक उत्थान के निमित्त होता है । कर्तव्य हमेशा समाज को लाभ देते है ।

3 धर्म हमेशा ही नैतिकता को मजबूत करता है । समाज नैतिकता और भौतिक उन्नति के बीच संतुलन बनाता है । राज्य सिर्फ आपराधिक आचरण से रोकता है ।

4 व्यक्ति की भौतिक उन्नति और नैतिक उन्नति के बीच संतुलन होना चाहिए । सिर्फ भौतिक उन्नति हमेशा गलत दिशा में ले जा सकती है और सिर्फ नैतिकता व्यक्ति को निराश या असफल भी कर सकती है ।

5 हर शरीफ या धूर्त चाहता है कि दूसरे लोग भौतिक प्रगति की जगह नैतिकता पर अधिक ध्यान दे । शरीफ आदमी अपने निकट के लोगों को अधिक कर्तव्य प्रेरित करता है तो धूर्त दूसरे लोगों को अधिक कर्तव्य प्रेरित करता है ।

        यदि हम भौतिक उन्नति और नैतिक पतन का विश्वव्यापी आकलन करें तो स्पष्ट है कि सारी दुनिया बहुत तेज गति से भौतिक प्रगति की दिशा में बढ रही है । सब प्रकार की सुविधाएं बढ रही है । ब्रम्हांड की खोज तक दुनिया निरंतर तेज गति से आगे बढ रही है । यहाँ तक कि गॉड पार्टकिल तक की खोज अंतिम चरण में है । विज्ञान ने हर मामले में इतनी सुविधाये जुटा दी है कि निकट भविष्य में कृत्रिम मनुष्य तक बनने की संभावनाए प्रबल हो गई है । इस भौतिक प्रगति के समानांतर विज्ञान ने विनाश के भी सारे साधन उपलब्ध करा दिये है । कब दुनिया में विश्वयुद्ध हो जाये और मनुष्य समाप्त हो जाये इसकी संभावना निरंतर बनी हुई है । भौतिक प्रगति के बाई प्रोडक्ट के रुप में पर्यावरण प्रदूषण भी एक समस्या बना हुआ है । नई-नई बीमारियां भी बढ रही है तो उनका ईलाज भी उसी तरह बढ रहा है । बीमारियां और ईलाज एक-दूसरे के पूरक बन गये है । जिस तरह दुनिया का प्रत्येक मनुष्य भौतिक प्रगति से सुख का अधिक अनुभव कर रहा है, ठीक उसी गति से दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति किसी अज्ञात भय से चिंतित भी है । ये दोनों प्रक्रियाएं पूरी दुनिया में एक साथ चल रही है । भौतिक प्रगति की दुनिया में जो गति है ठीक वही गति नैतिक पतन की भी दिख रही है । पूरी दुनिया का हर व्यक्ति प्रतिक्षण नैतिकता के मापदण्ड में नीचे जा रहा है । दुनिया इस प्रकार केन्द्रित हो गई है कि यदि दो व्यक्ति युद्ध की घोषणा कर दे तो सारी दुनिया मिलकर भी उन दोनों की इच्छा के विपरीत अपनी सुरक्षा नहीं कर सकती और दोनों शक्तियों के बीच निरंतर टकराव का खतरा बना रहता है, बना हुआ है । एक तरफ मानवता के नाम पर सारी दुनिया को प्रवचन देने का काम भी चलता रहता है तो दूसरी तरफ सारी दुनिया में नैतिकता के सारे मापदण्डों के विपरीत तिकडम भी बढती जा रही है । पूरी मानव जाति के स्वभाव में प्रति क्षण आक्रोश की मात्रा बढ रही है । हर आदमी मजबूत से डर रहा है और कमजोर को डरा रहा है ।

                   भारत भी भौतिक प्रगति और नैतिक पतन की विश्वव्यापी परिस्थितियों से अलग नहीं है । भारत में भी व्यक्ति से लेकर समूह तक की बहुत तेज गति से भौतिक उन्नति हो रही है । एक आकलन के अनुसार वर्तमान समय में भारत की भौतिक उन्नति प्रतिवर्ष छः से सात प्रतिशत की है । दूसरी ओर यदि हम नैतिक पतन का आकलन करे तो नैतिक पतन की भी वृद्धि दर प्रतिवर्ष छः से सात प्रतिशत अनुमानित होगी ही । छोटी-छोटी बच्चियां तक सुरक्षित नहीं है । भाई-भाई में विवाद तो आम बात हो गई है । किन्तु पति-पत्नी के बीच भी निरंतर टकराव बढ रहे है । परिवार व्यवस्था टूट रही है । अविश्वास बढ रहा है ।  न्यायालयों में मुकदमों की संख्या निरंतर बढ रही है । नकली संत एक बहुत बडी समस्या के रुप में सामने आ गये है । भ्रष्टाचार, जालसाजी, धोखाधडी, मिलावट अनियंत्रित होती जा रही है । समझ में नहीं आ रहा कि भौतिक प्रगति और नैतिक पतन के मामले में भारत किस दिशा में अधिक तेज गति से बढ रहा है । न्यायालयों में धर्मग्रंथो के उपर हाथ रखकर झूठी कसम खाना एक सामान प्रक्रिया बन गई है । राजनीति और धर्म तो लगभग व्यवसाय का रूप ले ही चुके है किन्तु समाज सेवा के नाम पर बनी संस्थाए भी अब व्यावसायिक केन्द्र बनती जा रही है ।  

              स्पष्ट दिखता है कि भौतिक प्रगति और नैतिक पतन के बीच दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है, किन्तु यह बात भी साफ है कि भौतिक प्रगति और नैतिक पतन एक साथ समान गति से आगे बढ रहे है । भारत के जिन पहाडी क्षेत्रों का भौतिक विकास कम हुआ है  वहाँ नैतिक पतन भी कम होना संदेह पैदा करता है कि दोनों के बीच में कही न कही कोई रिश्ता अवश्य है जो हमें नहीं दिखता ।

             भौतिक उन्नति में विज्ञान का बहुत बडा योगदान है । इसी तरह नैतिक पतन में भी राज्य व्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका है । दुनिया में जिस गति से विज्ञान तरक्की कर रहा है उसी गति से समाज व्यवस्था भी निरंतर कमजोर हो रही है । भौतिक उन्नति और समाज व्यवस्था के बीच सबसे अच्छा संतुलन भारतीय संस्कृति में रहा है । प्राचीन समय में भारत भौतिक प्रगति में भी सारी दुनिया में आगे था और नैतिकता के आधार पर भी । जब भारत में वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर होने लगी तब समाज व्यवस्था छिन्न-भिन्न हुई । परिणाम हुआ नैतिक पतन और आपसी टकराव जो धीरे-धीरे हमारे गुलामी में बदल गया । इसी तरह पूरी दुनिया में जब इस्लाम और साम्यवाद ने मजबूत होकर धर्म और समाज की व्यवस्था को छिन्न -भिन्न किया तब पूरी दुनिया में भी नैतिक पतन तेज गति से बढा । साम्यवाद ने धर्म को भी अफीम बता दिया तो उसने परिवार व्यवस्था को भी अप्रासंगिक सिद्ध कर दिया । व्यक्तिगत स्वतंत्रता तक को राज्याश्रित बना दिया । परिणाम हुआ भयंकर नैतिक पतन जिसका दुष्परिणाम सारी दुनिया भोग रही है और भारत भी उससे बहुत प्रभावित है ।

                अब हमें भौतिक उन्नति के साथ-साथ नैतिक उत्थान को भी आगे बढाने का प्रयास करना चाहिए । दुनिया इस दिशा में पहल नहीं कर सकेगी किन्तु भारत से इसकी शुरुवात हो सकती है, क्योंकि भारत को इसके संतुलन की लाभ हानि का पर्याप्त अनुभव है । भारत में वैसे भी साम्यवाद लगभग समाप्त है और इस्लाम का भी भारतीय संस्करण धीरे-धीरे आगे आ रहा है । नैतिक प्रगति की शुरुवात परिवार व्यवस्था, गांव व्यवस्था और समाज व्यवस्था को मजबूत करके किया जा सकता है । इस दिशा में निरंतर प्रयत्न जारी है । नैतिक उत्थान के लिए धर्म व्यवस्था को भी आगे लाने का प्रयास करना चाहिए । इस मामले में हिन्दू, मुसलमान, इसाई, सिख का कोई भेद उचित नहीं है । साथ ही भारत में कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था का भी प्रयोग करना चाहिए । यदि ज्ञान, सुरक्षा, सुविधा और सेवा के आधार पर बचपन से ही व्यक्तियों के योग्यतानुसार समूह बनाकर उन्हें उस दिशा में ट्रेनिंग दी जायेगी तो नैतिक पतन को रोका जा सकता है । हमे यह भी करना होगा कि राज्य समाज व्यवस्था मे हस्तक्षेप न करे बल्कि समाज राज्य व्यवस्था को नियंत्रित कर सकता है क्योकि समाज राज्य से उपर होता है । मैं चाहता हॅू कि भौतिक उन्नति और नैतिक पतन के  एक साथ चलने का जो कलंक दुनिया के माथे पर लगा है उसे धोने की शुरुवात भारत से हो सकती है ।