जनता के लिये महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा अथवा सामाजिक सुरक्षा

किसी भी देश मे जो सरकार बनती है उसके प्रमुख दो उद्देश्य होते है- 1 सामाजिक सुरक्षा 2 राष्ट्रीय सीमाओ की सुरक्षा । सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत सरकार प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारो की सुरक्षा की गारंटी देती है तो राष्टीय सुरक्षा के अतर्गत सरकार विदेशी आक्रमणो से अपनी सीमाओ की सुरक्षा की व्यवस्था करती है । सामाजिक सुरक्षा के लिये सरकार पुलिस विभाग बनाती है तो राष्टीय सुरक्षा के लिये सेना भर्ती करती है । दोनो ही महत्वपूर्ण हैं किन्तु समाज के लिये दोनो मे से क्या अधिक महत्वपूर्ण है यह विचारणीय है ।

         कोई भी सरकार सेना को अधिक महत्वपूर्ण मानती है क्योकि उसके लिये सीमाओ की सुरक्षा बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है । समाज पुलिस विभाग को अधिक महत्व देता है क्योकि उसकी सुरक्षा मे सेना की भूमिका नगण्य और पुलिस विभाग की बहुत महत्वपूर्ण होती है । हर अपराधी लगातार यह प्रयत्न करता है कि पुलिस का मनोबल गिरा रहे क्योकि पुलिस ही उसके अपराधीकरण मे बड़ी बाधा होती है । यहां तक कि अपराधी न्यायालय से उतना नही डरते जितना पुलिस से डरते है । अपराधियो को सेना से कोई विशेष खतरा नही होता । दूसरी ओर दूसरे देश के लोग हमेशा यह प्रयत्न करते है कि पडोसी देश की सेना का मनोबल लगातार गिरा हुआ रहे क्योकि सशक्त सेना ही उसके लिये बड़ी बाधा होती है । यदि हम भारत का आकलन करे तो सम्पूर्ण भारत मे भी लगभग वही हाल है । भारत का भी हर अपराधी लगातार पुलिस विभाग का मनोबल तोड़ने का प्रयत्न करता है । किसी भी पुलिस वाले से कोई गलत कार्य हो जाये तो पूरे पुलिस विभाग पर आरोग लगाया जाता है । न्यायपालिका के लोग भी अपने न्यायालय मे पुलिस विभाग के लोगो के साथ बहुत ही नीचे स्तर का व्यवहार करते है । आम आदमी पुलिस विभाग को भ्रष्ट कहने मे गर्व का अनुभव करता है किन्तु जितने भी छापे पड़े है उनमे पुलिस वालो की तुलना मे दूसरे विभागो का खजाना कई गुना अधिक पकड़ा जाता है । हर नेता पुलिस वालो पर गैर कानूनी कार्य करने के लिये दबाव बनाता है और जब पुलिस  वाला बदनाम होता है तब वह किनारे हो जाता है । थाने नीलाम होते है और नीलाम करने वाला कभी भ्रष्ट नही कहा जाता है । भ्रष्ट मान जाता है, पुलिस वाला जो नीलामी मे थाने की बोली लगाता है ।

        दूसरी ओर सेना के सैनिको का सम्मान बना रहे इस बात का प्रयत्न पूरी सरकार करती है, पूरी न्यायपालिका करती है, हर नेता करता है और हर नागरिक से भी चाहता है कि सेना के सैनिक को सर्वोच्च सम्मान दिया जाय। किसी नेता ने पुलिस वालो के पक्ष मे कुछ बोल दिया तो सब उस नेता पर टूट पड़ते है जबकि किसी नेता ने सिर्फ यह कह दिया कि सैनिक तो जान देने के लिये ही बार्डर पर रहता है तो ऐसे नेता को माफी तक मांगनी पड़ी । अगर कोई  सैनिक शहीद होता है तो उसे लगभग एक करोड़ रूपये की सहायता दी जाती है उसके बाद भी उसके परिवार वाले पचीस तरह का नाटक करते रहते है, जबकि पुलिस वालो के लिये यह राशि बहुत छोटी होती है ।

                          विचारणीय प्रश्न यह है कि पुलिस समाज की सुरक्षा करती है और सेना देश की । फिर भी पुलिस और सेना के बीच इतना अंतर क्यो । पुलिस वालो के पद हमेशा खाली रहते है जबकि सेना का बजट हमेशा बढ़ाने की मांग होती है । भारत मे आंतरिक असुरक्षा लगातर बढ़ती जा रही है जबकि वार्डर के असुरक्षित होने  का अभी तक कोई बडा खतरा नही दिखता । इसके बाद भी लगातार समाज मे इस प्रकार की भावना फैलायी जा रही है, जिससे पुलिस का मनोबल गिरा रहे । राष्टीय सुरक्षा के लिये भारत सरकार पूरे प्रयत्न कर रही है । यदि सीमाओ पर कोई असुरक्षा  होगी तब भारत सरकार जनता का आहवान करेगी और जनता को ऐसे संकट मे सेना के साथ जुट जाना चाहिये किन्तु अपराधियो और गुण्डा तत्वो से पुलिस निपटने मे किसी न किसी कारण से कमजोर पड़ती है तब सरकार या पुलिस के समर्थन मे आहवान के बाद भी कोई नही आता । कोई अपराधी अनेक अपराध करने के बाद भी भ्रष्टाचार या तकनीकी कारणो से निर्दोष सिद्ध हो जाता है तब भी न्यायपालिका से किसी तरह का कोई प्रश्न नही होता । प्रश्न होता है पुलिस से कि उसने ठीक से जांच नही की । ऐसा लगता है जैसे न्यायपालिका का नेतृत्व भगवान के पास हो और पुलिस मे सारे भ्रष्ट लोग भरे हुए है । यदि बार-बार न्यायपालिका से मुक्त हुए वास्तविक अपराधी को पुलिस फर्जी मुठभेड़ मे मार देती है तो सारे निकम्मे नेता, मानवाधिकारवादी न्यायालय सभी अपने अपने बिलो से निकलकर अपराधी के पक्ष मे चिल्लाना शुरू कर देते है । कोई नही कहता कि पुलिस वाले ने अच्छी नीयत से गैर कानूनी कार्य किया है अर्थात कानून पुलिस वाले को दंडित करेगा किन्तु समाज को इस संबंध मे निर्पेक्ष रहना चाहिये । कश्मीर मे दो सैनिक पाकिस्तान की सेना द्वारा मार दिये जाते है और किसी शहर मे अपराधियो द्वारा चार व्यक्तियो की हत्या कर दी जाती है । कश्मीर मे मारे गये सैनिक और अपराधियो द्वारा मारे गये नागरिक के बीच आसमान जमीन का फर्क होता है । सैनिक नागरिको द्वारा दिये गये वेतन से वहां नियुक्त है और नागरिक वेतन देने वाला मालिक है । कोइ्र्र भी देश प्रेमी मालिक की चिंता बिल्कुल नही करते । मेरे विचार मे राष्टीय सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के बीच यह अंतर खतरनाक है । पुलिस विभाग का गिरता मनोबल इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आपराधिक मनोबल बढ रहा है । रामानुजगंज के लोगो ने लीक से हटकर ज्ञान यज्ञ के माध्यम से एक नया प्रयोग किया, जिसमे पुलिस विभाग का मनोबल उंचा करने का प्रयत्न हुआ । उसका परिणाम हुआ कि रामानुजगंज शहर मे देश के अन्य भागो की तुलना मे एक प्रकार के अपराधो का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा ।

      मै चाहता हूँ कि हम राष्टीय सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा का भी महत्व समझे । राष्ट्र प्रेम का यह अर्थ नही है कि हम समाज को लगातार कमजोर होने दे । राष्ट्र और समाज के बीच एक संतुलन होना ही चाहिये जो वर्तमान समय मे बिगड़ रहा है । राष्ट को ही सरकार और सरकार को ही समाज मान लेने की भूल हो रही है।  इस दिशा मे देश के चिंतनशील लोगो को विचार करना चाहिये।