हमारी प्रमुख समस्या नागरिकता की पहचान अथवा गिरती हुई अर्थव्यवस्था
हमारी प्रमुख समस्या नागरिकता की पहचान अथवा गिरती हुई अर्थव्यवस्था
मैं बहुत वर्षों से लिखता रहा हूॅ कि साम्यवाद दुनियां की सबसे खतरनाक विचार धारा है तथा इस्लाम सबसे अधिक खतरनाक संगठन। साम्यवाद से तो दुनियां धीरे धीरे मुक्त हो रही है किन्तु इस्लाम अभी चर्चा तक सीमित है। इस्लाम सारी दुनियां के लिये खतरनाक है यह बात पूरी तरह प्रमाणित हो गयी है किन्तु इस्लाम की बढी हुई शक्ति और शेष समाज में मानवता की बढी हुई धारणा के बीच दूरी इतनी अधिक है कि या तो लोग इस्लाम को उतना खतरनाक समझ नहीं रहे हैं अथवा उनकी संगठित शक्ति के आगे भयभीत हैं। धर्म के नाम पर आतंक का समर्थन करने वाला दुनियां का एक मात्र संगठन इस्लाम है। अन्य कोई भी संगठन धर्म के नाम पर आतंक को उचित नहीं मानता। इस्लाम अपने विस्तार के लिये हिंसा का भी समर्थन करता है। कुछ इस्लामिक देशों में ईश निदा कानून जैसे घोर अमानवीय कानून भी खुले आम मान्यता प्राप्त है। किन्तु दुनियां की कोई अन्य विचार धारा इस प्रकार के अमानवीय कानूनों के विरूद्ध कुछ भी नहीं बोल पाती और दुनियां के इस्लामिक देश ऐसे सरिया कानूनों का समर्थन करते है क्योंकि इस्लामिक विस्तार इन सबका पहला उद्देश्य है तो सरिया कानून ऐसे उद्देश्य में सहायक।
वर्तमान भारत में एक बहस छिडी हुई है कि भारत के लिये इस्लाम पर नियंत्रण पहली प्राथमिकता है अथवा गिरती हुई अर्थव्यवस्था की चिंता। रवीश कुमार, अपूर्वानन्द सरीखे अनेक लोग गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बडी समस्या मानते हैं किन्तु ऐसे लोग तो प्रांरभ से ही पक्षपाती घोषित है किन्तु मेरे विचार में तटस्थ माने जाने वाले चेतन भगत, वेद प्रताप वैदिक, एन के सिंह, आचार्य पंकज सरीखे प्रतिष्ठित विद्वान भी इस्लामिक विस्तारवाद की तुलना में आर्थिक गिरावट को भारत की अधिक गम्भीर समस्या मानने लगते हैं तब चिन्तन की आवश्यकता पडती हैं। विचारणीय है कि भारत के लिये आन्तरिक शांति अधिक महत्वपूर्ण है अथवा सुविधा विस्तार। कल्पना करिये कि अगले दस वर्षों में भारत का जीडीपी शून्य हो जाये और भारत में मुसलमानों का प्रतिशत पन्द्रह से बढ़कर 30 हो जाये तो हमारें लिये अधिक चिंता का विषय कौन सा होना चाहिये। अभी अभी पन्द्रह दिन पहले भारत में मुसलमानों ने जिस तरह का शक्ति प्रदर्शन किया वैसा शक्ति प्रदर्शन यदि 30 प्रतिशत आबादी के बाद होगा तब हमारी आपकी सत्तर प्रतिशत आबादी की स्थिति किस तरह की होना सम्भावित है। जीडीपी गिर रही है यह सच है और भी गिर सकती है यह भी सम्भव है किन्तु हमारा जीवन स्तर लगातार उपर जा रहा है भले ही इसकी गति दुनियां के अन्य देशों की तुलना में कम हैं। हमारी आबादी में संगठित मुसलमानों का प्रतिशत बढता जा रहा है और हमारे अन्दर लगातार भय भी बढ रहा है जो दुनियां में बढते हुये इस्लाम के प्रति भय की तुलना में अधिक है। इस्लाम की बढती हुई ताकत भारत के लिये सबसे अधिक चिन्ता का विषय है क्योंकि पश्चिम के देश और चीन या रूस ऐसे खतरों से आसानी से निपट सकते हैं और मुस्लिम देशों में तो ऐसा खतरा है ही नहीं। भारत अकेला ऐसा देश है जहाँ ऐसा खतरा है और यदि खतरा बढा तो भारत निपट भी नहीं सकेगा। कश्मीर जैसे छोटे से भूभाग को भारत में बनाये रखना इतनी बडी समस्या है तो यदि कुछ और क्षेत्रों में आबादी का अनुपात बदला तो कितना कठिन होगा यह चिन्ता का विषय है। कश्मीर की चर्चा आते ही भारत सतर्क होकर मुस्लिम देशों की ओर मुँह देखना शुरू कर देता है क्योंकि मुस्लिम देश न्याय ओर सम्बन्धों की तुलना में धर्म को अधिक महत्व दे सकते हैं ऐसी परिस्थिति में भारत के समक्ष दुविधा की स्थिति आ जाती है।
स्पष्ट है कि इस्लाम सारी दुनियां के लिये खतरनाक संगठन के रूप में अपने पैर फैला रहा है लेकिन दुनियां इस खतरे को समझने में बहुत धीमी रफ्तार से आगे बढ रही है। भारत की पिछली राजनैतिक व्यवस्था ने तो इस्लामिक संगठन शक्ति को अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिये सहायक ही मान लिया था। अभी भी हमारी राजनैतिक व्यवस्था बहुत फूक फूक कर कदम आगे बढाने का प्रयास कर रही है। दुनियां में इस्लाम एक बड़ी शक्ति के रूप में है तो दुनियां के अन्य देशों में अभी तक इस्लाम के प्रति बहुत कम गम्भीरता दिख रही है। यही कारण है कि भारत ने नागरिकता कानून के रूप में एक छोटा सा कदम उठाने की शुरूआत की। भारत केा समान नागरिक संहिता तक जाना है। भारत का उद्देश्य उस सीमा तक आगे बढना है जहाँ तक इस्लाम संगठन शक्ति के बल पर भारत में अपनी जनसंख्या का विस्तार न कर सकें। इस्लाम का मुख्य उद्देश्य भारत को दारूल इस्लाम बनाना है और इस्लाम का यह उद्देश्य भारत में किसी भी तरीके से सफल न हों यह भारत चाहता है। फिर भी भारत ने छोटे से कदम से शुरूआत की है और भारत का मुसलमान भारत के इस छोटे से कदम से सर्तक हो रहा है। जैसा भारत सोच रहा है वह बात अन्य लोग समझ भी रहे हैं। भले ही नागरिकता कानून पूरी तरह पाकिस्तानी मुसलमानों के लिये है और भारतीय मुसलमानों का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी भारतीय मुसलमानों ने एक जुट होकर यह संदेश देने की कोशिश की हैं कि मुसलमान सबसे पहले मुसलमान होता है उसके बाद वह मनुष्य होता है और उसके बाद भारतीय या पाकिस्तानी। मुसलमान अपने धार्मिक संगठन को सर्वोच्च मानता है, राष्ट्रीयता से भी उपर। जिस तरह नागरिकता कानून के छोटे से कदम के पीछे छिपी भारत की मंशा को मुसलमानों ने ठीक ठीक समझ लिया उसी तरह मुसलमानों के शक्ति प्रदर्शन के पीछे छिपी मंशा को भी अन्य भारतीय ठीक ठीक समझने लगे हैं। यदि नागरिकता कानून पर आज भारत में जनमत संग्रह हो जाये तो भारत का दो तिहाई बहुमत समर्थन व्यक्त कर देगा। फिर भी भारत के विपक्षी दल अब तक अल्पसंख्याकों की संगठन शक्ति से मुक्त नहीं हो सके है। भारत के कुछ लोग अपने राजनैतिक स्वार्थ के कारण मानवता शब्द का बार बार प्रयोग करते हैं। मानवता का व्यवहार उसी के साथ करना चाहिये जो अपने को मानव पहले मानता हो। यदि कोई अपने को पहले मुसलमान और बाद में मानव माने तो उस सम्बन्ध में हमें मानवता शब्द पर फिर से विचार करना चाहिये। यदि कहीं सांप और नेवलें की लडाई हो रही हो तो हमे उचित अनुचित की भाषा छोडकर सांप के प्रति सावधान रहना चाहिये। यदि कोई अपने को शेर और दूसरों को गाय समझता है तो हमें सबको पशु मानकर एक समान व्यवहार करने से बचना चाहिये। भारत के जो मुसलमान पाकिस्तान के मुसलमानों के प्रति इतनी अधिक चिन्ता व्यक्त कर रहे हैं उनके प्रति मानवता का समान व्यवहार हमारे लिये घातक हो सकता है। कुछ लोग इस कानून को संविधान विरोधी बता रहे है। यदि कोई कानून संविधान विरोधी है तो उसका निर्णय न्यायालय में होगा, सडको पर नहीं। यदि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के विपरीत है तो यह भी उत्तर देना होगा कि हिन्दू कोड बिल धर्मनिरपेक्ष कैसे है। धर्म के आधार पर भारत का विभाजन होने के बाद भी भारत में अल्पसंख्यकों के विशेषाधिकार का कानून धर्मनिरपेक्ष कैसे हो गया। लगता है प्रारंभ से ही अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को तेजी से विस्तार करने के प्रयत्नों को ही धर्मनिरपेक्षता मान लिया गया।
इस्लाम का विस्तार विश्वव्यापी समस्या है किन्तु इसकी गम्भीरता को दो ही देश ज्यादा ठीक तरीके से समझ रहे है उनमें एक है वर्मा और दूसरा है चीन। वर्मा ने गलत तरीके से इसका समाधान शुरू किया तो चीन का तरीका सबसे अच्छा है। सबसे ज्यादा गलती पश्चिम के देश कर रहे हैं जो बिना सोचे समझे अपने स्वार्थ के कारण म्यांमार और चीन की अलोचना कर रहे है। भारत के जो लोग इस तरह पाकिस्तान के मुसलमानों के प्रति बहुत अधिक प्रेम प्रदर्शित करते हैं उनको सुधारने का क्या तरीका हो उसके लिये भारत सरकार को चीन के साथ सम्पर्क करना चाहिये। भारत एक मात्र ऐसा देश है जो सोच समझकर योजना पूर्वक इस्लाम को मानवता का पाठपढाने के संदेश की शुरूआत कर सकता है। मैं जानता हूॅ कि भारत की गुलामी में हमेशा ही जयचन्दों का अस्तित्व रहा है। आज भी भारत के कुछ राजनैतिक दल अथवा व्यक्ति अपने अपने स्वार्थ के लिये भारत की इस पहल का विरोध कर सकते हैं अथवा दिशा भी मोड़ सकते हैं। भारत के मृत साम्यवादी तो फिर से जीवित हो ही गये हैं किन्तु कुछ अन्य राजनैतिक दल भी आर्थिक गिरावट को सबसे बडी समस्या बता कर इस्लामिक विस्तारवाद के खतरे से ध्यान हटाने का प्रयास कर सकते हैं। ना समझ संघ परिवार हिन्दू राष्ट्र की आवाज उठाकर इस विश्व व्यापी समस्या को हिन्दुत्व विस्तारवाद के लिये उपयोग कर सकता है । वह नहीं समझता की इस्लामिक विस्तारवाद बहुत छोटी समस्या नहीं है और इससे टकराने के लिये विश्व व्यापी प्रत्यनों की आवश्यकता है। संघ परिवार का बचपना इस प्रत्यन को कमजोर कर सकता है। खतरे अनेक हैं किन्तु खतरों से बचना भी आवश्यक है। कुछ लोग इस प्रयत्न को गृहयुद्ध का खतरा बताने का प्रयास कर रहे हैं तो कुछ लोग विश्व युद्ध तक की बात करने लगते हैं। यदि भारत के इस प्रयत्न से कोई गृहयुद्ध होता है तो वह युद्ध जितनी जल्दी हो जाये उतना अच्छा है क्योंकि जितना विलम्ब होगा उतना ही खतरा बढेगा। यदि इस कदम से कोई विश्व युद्ध भी हो जाये तो यह कोई हानिकारक नही होगा क्योंकि मानवता की रक्षा के लिये भारत हमेशा से खतरे उठाता आया है और यह खतरा इसे उठाना चाहिये। हमारी अर्थव्यवस्था चाहे और भी नीचे चली जाये किन्तु दुनियां को साम्प्रदायिक खतरों से मुक्त कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये। इस सम्बन्ध में भारत सरकार जिस भी तरह की पहल करें उस पहल का समर्थन किया जाना चाहिये। हमें सुविधा नहीं शान्ति चाहिये यह भारत का पुराना संदेश रहा है और भविष्य में भी इस दिशा में बढना चाहिये।
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