मार्गदर्शन

मार्गदर्शन


हम मोड़ने चले हैं, प्रचंड युग की धारा
उठते है गिरते गिरते, हे साथी दो सहारा

मेरी वर्तमान उम्र बयासी वर्ष की है। छत्तीसगढ़ का रामानुजगंज शहर ही जन्मभूमि से लेकर कर्मभूमि तथा अब तक प्रेरणा का स्रोत है। चौदह वर्ष की उम्र में ही ईसाइयत के सम्पर्क में आया और आर्य समाज के लोगो ने हस्तक्षेप करके ईसाई बनने से रोक लिया। सोलह वर्ष की उम्र में ही मैं पंडित नेहरू की नीतियों का प्रखर विरोधी के रूप में विख्यात हो गया। सत्रह वर्ष में मैं लोहिया जी की पार्टी का नगर अध्यक्ष बना तथा मेरे नेतृत्व में नगरपालिका चुनाव हुआ जिसमे पूर्ण बहुमत हमारा आया। पचीस वर्ष की उम्र में मैं निर्दलीय चुनाव जीतकर नगरपालिका का अध्यक्ष बना तथा भारतीय जन संघ के साथ जुड़ा। सन चौहत्तर तक मैं जनसंघ से जुड़कर राजनैतिक नेतृत्व संभालता रहा। सन पचहत्तर के आपातकाल में मैं उन्नीस माह जेल में रहा।

इस पैंतीस वर्ष के कार्यकाल में मैं सामाजिक स्तर पर भी बहुत सक्रिय रहा। मैंने आर्य समाज से सीखा कि शराफत की तुलना में समझदारी अधिक महत्वपूर्ण है तथा समझदारी विकसित करने का सबसे अच्छा तरीका आर्य समाज द्वारा प्रस्तावित ज्ञान यज्ञ है। मैं सन पचपन से ही ज्ञान यज्ञ के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा स्थानीय स्तर तक समझदारी के विकास में सक्रिय रहा। हमारा शहर बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमाओं से बिल्कुल निकट होने से वहाँ अपराध वृद्धि का खतरा था। मैंने धर्म, जाति, भाषा आदि के वर्ग समूहों को एक जुट रहकर अपराध नियंत्रण के लिए सक्रिय होने हेतु एकजुट किया। परिणाम हुआ कि हमारा शहर अपराध नियंत्रण के लिए भारत मे प्रसिद्ध हो गया। हमलोगों ने सामाजिक एकजुटता बनाये रखने की दिशा में निरन्तर कोशिश की। हिन्दू मुसलमान, दलित सवर्ण आदिवासी, कर्मचारी व्यापारी, गरीब अमीर, महिला पुरूष, कांग्रेसी जनसंघी आदि सारे भेदभाव भूल कर एक नागरिक महासंघ सक्रिय किया जो अपराध नियंत्रण में बहुत सफल रहा। हमने शहर में हड़ताल करने पर सामाजिक प्रतिबंध लगाये तथा किसी प्रकार के चंदा मांगने पर पूरी रोक लगाई। अपराधों को नए तरीके से परिभाषित करके अपराध करने को तीन नम्बर का कार्य की एक पृथक सूची तथा पहचान देकर उन्हें सामाजिक रूप से प्रतिबंधित किया।

हमने अपने शहर के लोगो को तैयार किया कि हम किसी भी स्थिति में बलप्रयोग नही करेंगे, आपसी विवाद पंचायत से निपटाएंगे तीन नंबर के लोगो का व्यस्थित और प्रभावी तरीके से सामाजिक बहिष्कार करेंगे कानून नही तोड़ेंगे किन्तु दो नम्बरों के कानूनों से बचाव में सामाजिक एकता, भ्रष्टाचार, लोभ लालच का उपयोग कर सकते हैं। हम अपनी नीतियां उच्च आदर्शवाद से हटाकर व्यावहारिक धरातल तक सीमित रखेंगे।

इस बीच मैं तो जेल चला गया किन्तु हमारी सामाजिक व्यवस्था ठीक तरीके से चलती रही। जेल से छूटने के बाद देश में तथा प्रदेश में हमारी सरकार बनी। हमारी प्रसिद्धि दूर दूर तक थी। मुझे अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई तथा मेरे दो साथियों को मंत्री मंडल में जगह मिली। मेरा सीधा संबंध ठाकरे जी के माध्यम से अटल जी तथा आडवानी जी तक था। हमें मध्य प्रदेश का गृह मंत्रालय तथा भारत का श्रम राज्य मंत्री का जिम्मा मिला। मुझे पूरा विश्वास था की सत्ता के माध्यम से गंभीर अपराध रोके जा सकते हैं और हम अपने जिले में 1 वर्ष मैं ही अपराध नियंत्रण तथा श्रम सम्मान में उल्लेखनीय प्रगति सिद्ध कर देंगे। लेकिन ढाई वर्ष तक लगातार तथा पूरी इमानदारी से प्रयत्न करने के बाद भी हम कोई बदलाव नहीं कर सके। मैं अपने को असफल मानने लगा। मेरा सत्ता की राजनीति से मोहभंग हुआ और मैं 25 दिसंबर 1984 को दलगत राजनीति से संन्यास ले कर एक पहाड़ के नीचे कुटिया में रहने लगा और रिसर्च करने लगा कि दोष कहां है। मैंने देशभर के प्रमुख लोगों के साथ मिलकर 15 वर्ष तक संवैधानिक व्यवस्था पर रिसर्च किया और 4 नवंबर 1999 तक इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि भारत के संविधान में ही मौलिक कमियां हैं। 4 नवंबर को भारत का प्रस्तावित संविधान राष्ट्र को समर्पित करके अपना रिसर्च बंद कर दिया। इस बीच दिसंबर 1995 को हमारी सरकार ने हमारे संविधान की खोज के कार्य को गंभीर खतरा समझकर मुझे गोली मारने की भी कोशिश की किंतु न्यायालय ने तथा हमारे गांधीवादी मित्रों ने आगे आकर मेरी रक्षा की।

4 नवंबर को ही देशभर के साथियों ने रामानुजगंज शहर में नए संविधान के अनुसार लोक स्वराज का प्रयोग करने का निर्णय किया। मुझे चुनाव लड़ाकर नगरपालिका अध्यक्ष बनाया गया और पांच वर्ष के कार्यकाल में ही हम प्रयोग प्रमाणित करने में सफल हो गए। 2005 में मैं दिल्ली जाकर रहने लगा। वहां कुछ प्रमुख लोगों से अच्छा संपर्क रहा। हमारे सारे मित्र लगातार हमारे संवैधानिक निष्कर्ष और प्रयोग से सहमत रहे किंतु कोई भी इस दिशा आगे बढ़ने के लिए सामने नहीं आना चाहता था। सब लोग सत्ता परिवर्तन की लड़ाई को ही व्यवस्था परिवर्तन कहते थे जबकि मेरा आशय अलग था। मुझे लोकस्वराज्य की दिशा में बढ़ने वाला कोई साथी नहीं मिला और सत्ता संघर्ष में मेरी कोई रुचि नहीं थी। मैं पुनः निराश हुआ और रामानुजगंज लौट गया।

मैं रामानुजगंज के निकट 120 गांव में ग्राम सभा सशक्तिकरण का प्रयोग शुरू किया। इस प्रयोग का इस क्षेत्र में बहुत अधिक प्रभाव हुआ। ग्राम सभाएँ मजबूत हुई और ग्राम पंचायतें कमजोर हुई। ग्राम सभाओं में भीड़ जुटने लगी। भ्रष्टाचार बहुत कम हुआ। सरकारी कर्मचारी का भी पूरा सहयोग मिला। भ्रष्टाचार नियंत्रण के प्रयासों में हमारे जिले को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ी। हमारा प्रयत्न था कि गांव में दलविहीन लोकतंत्र विकसित हो। सारे निर्णय लोग मिल कर ले। हम लोगों ने प्रयोग शुरू किया कि कुछ चुने हुए गांव निर्विरोध पंचायत चुनकर देश का मार्गदर्शन करें। 5 गांव के लोग पूरी तरह तैयार भी हुए। कर्मचारी भी सहायक थे किंतु राजनेताओं ने अपनी सारी ताकत लगाकर इस योजनाओं को असफल कर दिया। हमारी टीम का उत्साह टूट गया। हम लोगों ने काम बंद कर दिया।

मैंने महसूस किया कि किसी भी प्रकार के बदलाव में वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था सबसे बड़ी बाधा है। बिना राजनीतिक सहायता के कोई बदलाव संभव नहीं है और राजनेताओं का साथ लेकर यदि व्यवस्था परिवर्तन अभियान चला तो उसका अंतिम परिणाम सत्ता परिवर्तन तक ही सीमित रह जाएगा, जैसा गांधी, जयप्रकाश, अन्ना आंदोलन का हुआ। मैं महसूस किया कि यह कार्य मेरे बस का नहीं है। मैंने जून 2018 में निष्कर्ष निकाला कि व्यवस्था परिवर्तन का कोई भी प्रयास आम लोगों के बीच जन जागरण से ही संभव हो सकता है। लेकिन यह कार्य बहुत धीमी गति से बदलाव ला सकता है। इसे समयवद्ध परिणाम की उम्मीद के साथ नहीं जोड़ सकते। दूसरी बात यह समझ में आई कि समाज में मार्गदर्शकों का व्यापक प्रभाव पड़ता है। वर्तमान विश्व में मार्गदर्शकों के अभाव के कारण राजनेता या धर्मगुरु ही मार्गदर्शन की भूमिका में आ गए हैं। परिणाम विपरीत हुआ क्योंकि धर्म और राजनीति समाज सेवा ना होकर व्यवसाय बन गई। मुझे महसूस हुआ कि यदि एक विश्वसनीय मार्गदर्शक मंडल बने तो युग परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। मैंने 2 वर्ष एकांत चिंतन के लिए ऋषिकेश में गंगा किनारे चिंतन करना उचित समझा और 2 वर्ष वहां रहकर चिंतन भी किया और प्रयोग भी किया। ऋषिकेश में सितंबर 2019 में 15 दिन का एक विचार मंथन शिविर लगा और उसके अच्छे परिणाम दिखें। फरवरी 2020 में हम लोगों ने ऋषिकेश का काम पूरा समझकर दिल्ली कार्यालय लौटना तय किया और 8 मार्च को दिल्ली आ गए कोरोना के कारण 15 मार्च को हम अपने अपने घर चले गए और आज तक घर में है। अब मुख्य कार्यालय रायपुर में इसी सप्ताह से शुरू कर रहे हैं।

मेरी उम्र 82 वर्ष है। आर्य समाज के अनुसार मैंने 70 वर्ष की उम्र में ही वानप्रस्थ दीक्षा लेकर स्वयं को पूरी तरह समाज को समर्पित कर दिया। अब अन्य सब गतिविधियॉ समेटकर सिर्फ समाज सशक्तिकरण तक सक्रियता सीमित करेंगे। समाज सशक्तिकरण में भी हम सिर्फ प्रत्येक व्यक्ति में शराफत की जगह समझदारी विकसित होने तक सक्रिय रहेंगे और इस सक्रियता के लिए भी हम एक छोटा सा मार्गदर्शक मंडल बनाने का प्रयास करेंगे। वर्तमान समय में समाज में विश्वसनीयता का संकट है। विज्ञान या चिकित्सा में तो कुछ विश्वसनीय अनुसंधान की व्यवस्था है भी किंतु समाजशास्त्र पर कोई सामूहिक इकाई नहीं है। हम यहीं से कार्य शुरू कर रहे हैं। हम लोग विभिन्न पारिवारिक राजनैतिक सामाजिक शैक्षिक वैश्विक आर्थिक धार्मिक तथा अन्य सब प्रकार के विषयों पर विचार मंथन को माध्यम बनाकर अनुसंधान करेंगे तथा जो निष्कर्ष निकलेगा वह समाज को देते रहेंगे। हमारा विचार मंथन का काम भी चलता रहेगा तथा जन जागरण का भी साथ-साथ चलेगा।

1. इसके लिए हमारे कार्यालय का प्रयास होगा कि हम एक मार्गदर्शक मंडल बनावे जिसमें अभी लगभग 500 लोगों की सक्रिय सहभागिता हो। नाम चयन की प्रक्रिया एक समिति के माध्यम से चलती रहेगी। मैंने अब तक करीब 500 विभिन्न विषयों पर व्यक्तिगत रूप से निष्कर्ष निकाले हैं। आप इन निष्कर्षों को समर्थन देने के पूर्व उस पर आपस में विचार मंथन करेंगे तथा आवश्यक संशोधन भी करेंगे। इसके लिए हम प्रति सप्ताह कुछ विषय फेसबुक व्हाट्सएप के माध्यम से अपने मित्रों को देकर उस पर विचार करेंगे। यह विचार मंथन फेसबुक व्हाट्सएप पर प्रतिदिन चलता रहेगा। रविवार सुबह 11:00 बजे दिन में मैं उक्त साप्ताहिक चर्चा पर फेसबुक में लाइव अपनी बात रखूंगा। सोमवार सुबह 11:00 बजे हम उक्त विषय पर सीधा प्रश्नोत्तर रखेंगे जो जूम या अन्य तरीके से भी जुड़ सकते हैं। इस योजना में सक्रिय लोगों का हम हर छह माह में 15-15 दिन का विचार मंथन शिविर रखेंगे। इसमें अपने सभी 500 साथियों को विशेषकर आमंत्रित के रूप में शामिल करेंगे। हम यह पहला प्रयोग ऋषिकेश में सफलता से कर चुके हैं अब इस प्रयोग को विस्तार देंगे।

2. हमारा कार्यालय का प्रयास होगा कि देश मे विभिन्न स्थानों पर कुछ ज्ञान यज्ञ केंद्र बने जिनके माध्यम से वहाँ के लोगों में समझदारी का विकास हो।

3. हमारा कार्यालय मार्गदर्शक मंडल के माध्यम से मंथन और निष्कर्ष प्रस्तुत करेगा तथा ज्ञान यज्ञ के माध्यम से समझदारी बढ़ाने का प्रयास करेगा। इसके अतिरिक्त हमारा कार्यालय कोई अन्य कार्य नहीं करेगा यदि कोई अन्य संस्था या संगठन कुछ सार्थक प्रयास करते हैं तो कार्यालय उनकी सहायता कर सकता है।

4. पूरे कार्यक्रम की आर्थिक व्यवस्था के लिए एक मार्गदर्शन ट्रस्ट बनेगा।

हम लोगों ने निष्कर्ष निकाला है कि व्यक्ति में स्वार्थ और हिंसा की भावना का विस्तार एक बड़ी समस्या है तो समाज में राजनैतिक शक्ति का केंद्रीकरण एक बड़ी समस्या है। दोनों समस्याओं से एक साथ निपटने के लिए जन जागरण ही एकमात्र आधार है। जन जागरण के लिए आम लोगों को समझदार बनाना आवश्यक है और समझदारी के विकास के लिए कुछ समझदार लोगों का मार्गदर्शक मंडल बनना चाहिए जिसकी विश्वसनीयता समाज को वैचारिक दिशा देने में सहायक हो। हम मार्गदर्शक के आधार पर इस दिशा में सक्रिय हैं।

आपकी भी कुछ भूमिका चाहिए। यह युग परिवर्तन की दिशा में एक प्रयास है। आप चाहे तो प्रतिदिन रात 8:30 से 9:30 बजे की चर्चा में जूम में जुड़ सकते हैं। आप रविवार सुबह 11:00 बजे की चर्चा में तथा सोमवार सुबह 11:00 बजे के प्रश्नोत्तर सत्र में जुड़ सकते हैं। आप मार्गदर्शन फेसबुक व्हाट्सएप से जुड़कर प्रश्नोत्तर भी कर सकते हैं। आप ज्ञान यज्ञ का भी आयोजन कर या करा सकते हैं। आप 30 दिन के वार्षिक मार्गदर्शन शिविर में भी जुड़ सकते हैं। आप यदि कोई सहायता करना चाहे तो ट्रस्ट से भी संपर्क कर सकते हैं। आप क्या कर सकते हैं? यह निर्णय आपका होगा हम क्या कर सकते हैं वह मैंने संक्षिप्त रूपरेखा रखी हैं।