ज्ञानयज्ञ गीत

आज खड़ा सम्पूर्ण देष के आगे यहॉं सवाल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, निकला आज मषाल है।।
राजनीति में जहर घुला है, टूट रही हैं दीवारें।
मन्दिर उगल रहे हैं शोले, खंजर गढ़ती मीनारें।
कव्वे मोती के अधिकारी, चुगता रेत मराल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।
अपराधी कर रहे फैसला, टूट रहा कानून यहॉं।
देष भक्त के हाथों होता, मानवता का खून यहॉं।
गुण्डे उछल रहे हैं भाई, चोर यहां खुषहाल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।
खतरे में है आज शराफत, नेता दंगे करवाते।
मुल्ला पण्डित के झगडे़ में लोगों के घर जल जाते।
षड़यन्त्रों से आज हिल रही, संसद की दीवाल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।
शोषक भ्र्रष्टाचारी ही, इस युग में नाम कमाता है।
जो अबला का शील लूटता, वही राम बन जाता है।
तोड़ रहा है जन-जीवन को, चंदा और हड़ताल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।
गुण्डे हैं हर ओर सुरक्षित, सज्जन आंसू पीते हैं।
आज वोट की राजनीति में मर मर कर हम जीते हैं।
चोर उचक्को का फैला अब यहां, मुरारी जाल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।
ज्ञान यज्ञ, अपराध मुक्त, जीवन का सुन्दर सपना है।
जो मानवता को जीवन दे, राज धर्म वह अपना है।
ज्ञान यज्ञ इस अन्धकार में, अव्यस्था का काल है।
ज्ञान यज्ञ ऐसे में लेकर, ..................................।।