मुसलमानों की सामाजिक स्थिति GT-438
9.मुसलमान आज कहाँ खड़े हैः
मेरे एक बहुत अच्छे मित्र सिद्धार्थ शर्मा जी ने बेंगलुरु से लिखा है कि मुसलमान दुनिया में तीन प्रकार के होते हैं सामान्य, कट्टर और बर्बर। सिद्धार्थ जी के अनुसार हमास कट्टर मुसलमान में गिना जाता है बर्बर मुसलमान में नहीं। लेकिन मेरे अपने विचार में हमास बर्बर गिना जाता है कट्टर नहीं। मुसलमान तीन प्रकार के होते हैं- सामान्य जो रोजा नमाज जकात आदि पांच शिक्षाओं को धर्म मानते हैं, दूसरे कट्टर मुसलमान होते हैं जो शादी तलाक संगठन आदि को महत्व देते हैं और तीसरे बर्बर मुसलमान भी होते हैं जो हमेशा जिहाद का नारा लगाते हैं। यहां तक तो मैं सहमत हूं लेकिन जिस तरह हमास ने इसराइल में घुसकर वहां के निर्दाेष लोगों को बंधक बना लिया या हत्याएं कर दी वह तो बर्बरता की निशानी है कट्टरवादिता की नहीं। अभी दुनिया में जो तीन प्रकार के मुसलमान हैं उनमें साफ-साफ अंतर देखा जा सकता है पांच प्रतिशत मुसलमान सामान्य या धार्मिक माने जा सकते हैं 95ः या तो कट्टर होते हैं या बर्बर होते हैं बर्बर मुसलमान ने जब इसराइल पर आक्रमण किया तो कट्टर मुसलमान ने खुशियां बनाई और जब इसराइल ने बर्बरता पर आक्रमण किया तब कट्टर मुसलमान सारी दुनिया में दया की भीख मांग रहा है आज तक मुसलमान ने यह घोषणा नहीं कि वह न्याय मांग कर लेना चाहते हैं या लड़ कर लेना चाहते हैं। दुनिया का मुसलमान एक तरफ लड़ाई जारी रखना चाहता है और दूसरी तरफ न्याय का कटोरा लिए भी घूमता रहता है सारी दुनिया के मुसलमान ने शांति प्रिय देश में न्याय की दुहाई देनी शुरू करती है यह मुसलमान कट्टर है । अभी आज ही पाकिस्तान में जो आक्रमण किया गया वह इजराइल में नहीं किया यहूदियों ने नहीं किया हिंदुओं ने नहीं किया मुसलमान ने किया है जिसमें की 50 लोग मारे गए हैं इसलिए मेरा यह निवेदन है कि आप इस्लाम की तुलना हिंदुत्व और यहूदी या ईसाइयों से ना करें इस्लाम संगठन है धर्म नही।
10.मुसलमानो के प्रति सामाजिक धारणाः
कल शनिवार को इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हो रहा था मैं आमतौर पर क्रिकेट मैच में कोई रुचि नहीं रखता लेकिन कल मेरे मन में एक अज्ञात भाव स्थापित हो गया था कि पाकिस्तान को हारना चाहिए इसलिए मैं बीच-बीच में कई बार मैच का परिणाम देखने के लिए उत्सुक था और पाकिस्तान के हारने पर मुझे खुशी हुई। मैं सोचता हूं कि इस प्रकार की भावना मेरे अंदर कहां से आई इसमें कहीं मैं गलत हूं या भारत के मुसलमान के व्यवहार ने मुझे इस दिशा में प्रेरित किया। मैं लगातार इस बात की प्रतीक्षा करता रहता हूं कि इसराइल कितना आगे बढ़ा यह स्थिति अच्छी है या बुरी है यह मुझे नहीं पता लेकिन इस दिशा में मेरी सोच लगातार बढ़ती जा रही है । मैं तो इस विषय पर गंभीरता से सोचूंगा ही लेकिन मेरा निवेदन है कि भारत के मुसलमान भी इस विषय पर गंभीरता से सोचें कि मेरे जैसा व्यक्ति इस प्रकार से एक पक्षीय दिशा में क्यों सोचने लगा है.
मेरे कुछ मित्र प्रमोद सिंह जी जाकिर भाई संजय ताँती आदि ने मेरे विचारों में बदलाव का कारण पूछा कुछ मित्रों ने फोन भी किया मैं स्पष्ट कर दूं कि मेरे विचारों में कोई बदलाव नहीं है नीतियों में भी कोई बदलाव नहीं है जैसे-जैसे अनुभव आ रहा है समय बीत रहा है उस तरह अनुभव कुछ अलग परिणाम दे रहे हैं । मैं बचपन से ही गांधी को मानने वाला रहा मैं गांधी विचारों का प्रमुख समर्थक रहा। गांधी विचारों का विरोध किया सावरकर ने नेहरू ने अंबेडकर ने और मुसलमान ने। गांधी बटवारा नहीं चाहते थे लेकिन मुसलमान के बहुमत ने बंटवारे के पक्ष में मत दिया इससे गांधी दुखी थे। तो इन चारों को मैंने कभी माफ नहीं किया। मैंने पूरे जीवन में सावरकर नेहरू अंबेडकर और मुसलमान को माफ नहीं किया मैंने बचपन में रामानुजगंज में जो प्रयोग किया उसे प्रयोग की सफलता से मुझे ऐसा विश्वास हुआ कि मुसलमान और संघ में बदलाव संभव है उस समय संग सावरकरवादियों की आंख बंद करके नकल करता था और मुसलमान पूरी तरह धर्म को ऊपर मानते थे समाज को नहीं। लेकिन रामानुजगंज में यह बदलाव दिखा मैं बहुत संतुष्ट हुआ। लेकिन धीरे-धीरे आगे चलकर के अनुभव बताता है कि संघ तो सावरकर वीडियो से दूर होता गया लेकिन रामानुजगंज को छोड़कर बाहर के मुसलमान अधिक से अधिक सांप्रदायिक होते गए मैं आज भी रामानुजगंज के मुसलमान के साथ खड़ा हूं लेकिन सारे देश की जो स्थिति है वह मुझे मजबूर कर रही है कि मैं नई परिस्थितियों पर विचार करूं। संघ के लोग गांधी की प्रशंसा करने लग गए हैं संघ के लोग प्रवीण तोगड़िया और बाल ठाकरे से दूरी बना रहे हैं और भारत का मुसलमान कटर से कट्टर होता जा रहा है। आज मुझे दुख होता है कि भारत का मुसलमान आज भी हिंदुओं को संवैधानिक तौर पर समान अधिकार देने के पक्ष में नहीं है क्या भारत के हिंदुओं को भी बराबरी का अधिकार नहीं मिलना चाहिए इस संबंध में मुझे भारत के मुसलमान से शिकायत है कल हम इस विषय पर अंतिम रूप से चर्चा करेंगे।
मैं यह स्पष्ट कर चुका हूं कि रामानुजगंज के मुसलमान के संबंध में मेरी धारणा अब तक नहीं बदली है क्योंकि वहां के मुसलमान के सोचने का तरीका अन्य सारी दुनिया से कुछ अलग है लेकिन देश भर के मुसलमान के संबंध में मैं यह चाहता हूं कि मेरे जैसे व्यक्ति के यदि अनुभव में कुछ ऐसे बदलाव दिख रहे हैं तो देश भर के मुसलमान को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। पहली बात तो यह है कि भारत के मुसलमान को यह बात साफ कर देनी चाहिए कि समान नागरिक संहिता का किसी भी रूप में विरोध ना किया जाए जबकि हम हिंदू ही हिंदू राष्ट्र का विरोध कर रहे हैं तो आपको समान नागरिक संहिता का समर्थन करने में क्या दिक्कत आती है और यदि आप हमें बराबरी का अधिकार नहीं दे सकते तो फिर हमारा आपका क्या संबंध हो सकता है। दूसरी बात कि मुसलमान को यह बात विचार करनी होगी कि वह समाज का निर्णय मानेंगे अथवा लड़कर न्याय लेंगे यदि कोई बात गलत हो रही है तो आप अंत में समाज का निर्णय मानेंगे या नहीं अन्याय का बदला यदि आप लड़ कर लेना चाहते हैं तो हमें इससे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन रोना धोना छोड़िए आप दिन रात लड़ने के लिए भी तैयार रहें और रोने के लिए भी तैयार रहे यह दुहरा आचरण अब नहीं चलेगा। तीसरी बात कि आपको यह गारंटी देनी होगी कि धर्म स्थान का राजनीतिक या आतंकवादी उपयोग नहीं किया जाएगा धर्म स्थान में किसी भी परिस्थिति में कोई उग्रवादी हथियार नहीं रखे जाएंगे यदि आप धर्म स्थान का उपयोग उग्रवादी या आतंकवाद के लिए करते हैं तो आप जरा भी विश्वसनीय नहीं है इन तीन बातों की घोषणा के बाद ही मैं फिर से अपने निष्कर्ष पर विचार कर सकता हूं अन्यथा अनुभव ने मेरे सामने जो निष्कर्ष दिया है वह मैंने आपके सामने लिख दिया
11.न्याय की मांग कैसे पूरी होः
आज मैंने एक प्रश्न उठाया था कि हमारे मुसलमान भाई इस बात का जवाब दें कि वे न्याय मांग कर लेना चाहते हैं या लड़कर लेना चाहते हैं अभी तक किसी मुसलमान भाई का कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ मैं जानता हूं कि इस प्रश्न का उत्तर देना उनके बस की बात नहीं है क्योंकि मुसलमान 24 घंटे न्याय मांगने के लिए भी तैयार रहता है और लड़ने के लिए भी तैयार रहता है यहां तक कि अगर कोई दूसरा लड़ने वाला नहीं मिलेगा तो मुसलमान आपस में ही लड़ेंगे लेकिन लड़ेंगे जरूर । मेरा तो यह भी अनुभव है कि सपने में भी मुसलमान लड़ता ही रहता है कभी शांति से नहीं रहता यह एक विचित्र बात है ।इसलिए मेरा यह विचार है कि मेरे मुसलमान भाइयों को इस बात पर फिर से विचार करना चाहिए कि वे दुनिया के साथ मांग कर न्याय लेना चाहते हैं या लड़कर लेना चाहते हैं।
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