पक्ष - विपक्ष GT-438

पक्ष विपक्ष

20.सामाजिक टकराव की विपक्षी राजनीतीः

5 वर्ष पहले कश्मीर से धारा 370 हटाने के मामले में विपक्षी दलों ने कश्मीर के लोगों से यह उम्मीद की थी कि वहाँ कोई बहुत बड़ा तूफान आ जाएगा और सरकार असफल हो जाएगी। लेकिन विपक्ष की सारी उम्मीदें पानी के बुलबुले के समान शांत हो गई। 5 वर्ष बाद मणिपुर की घटनाओं से भी विपक्ष को इस तरह की उम्मीद पैदा हुई थी कि मणिपुर की आग मणिपुर से और आगे फैल सकती है और ईसाइयों तथा हिंदुओं के बीच सांप्रदायिकता बढ़ाने की उम्मीद की थी लेकिन धीरे-धीरे मणिपुर में भी शांति स्थापित हो रही है। मणिपुर की शांति से विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी को बहुत झटका लगा है। कांग्रेस पार्टी मणिपुर के टकराव को राष्ट्रव्यापी स्वरूप देने के लिए प्रयत्नशील थी लेकिन राष्ट्रव्यापी स्वरूप की जगह मणिपुर क्षेत्रीय टकराव का भी रूप नहीं ले पाया। इस तरह कांग्रेस पार्टी की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गई अब विपक्षी दल कश्मीर और मणिपुर की चर्चा को बंद करके किसी एक नए टकराव की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लगता है कि अगले चुनाव के पहले अब विपक्षी दलों की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह जायेंगी।

21.भारतीय राजनीती की विपरीत विचारधाराएँः

भारतीय राजनीति दो विपरीत दिशाओं में साफ-साफ जाती हुई दिख रही है एक तरफ है मुसलमान कम्युनिस्ट विचारधारा दूसरी तरफ है हिंदुओं के विचारधारा। इसी तरह आर्थिक मामलों में भी बिल्कुल अलग-अलग दृष्टिकोण है एक तरफ है उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना अधिक से अधिक पैसा गरीब लोगों में बांटना उद्योगों को बंद करना आयात बढ़ाना दूसरी तरफ है निर्यात बढ़ाना देश का उत्पादन बढ़ाना देश को आत्मनिर्भर बनाना। इन दोनों दिशाओं में सत्ता पक्ष और विपक्ष साफ-साफ बंट रहा है। इसलिए मैं नरेंद्र मोदी का समर्थक हूं मैं हिंदू हूं मैं खुले व्यापार का पक्षधर हूं मैं आत्मनिर्भर भारत देखना चाहता हूं।

इसी तरह भारतीय राजनीति में दो और केंद्र बन रहे हैं एक के केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं तो दूसरे के केंद्र में राहुल गांधी। राहुल गांधी ने यह आरोप लगाया है कि भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था अडानी, नरेंद्र मोदी और अमित शाह मिलकर चला रहे हैं। सब कुछ इन तीन लोगों पर केंद्रित है। नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया है कि विपक्ष की पूरी राजनीति सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका के इर्द- गिर्द घूम रही है। यह तीन लोग जैसा चाहते हैं उसी तरह विपक्ष आंख बंद करके चलने को मजबूर है। मैं स्वयं समझता हूँ कि दोनों के आरोप में बहुत कुछ सच्चाई है। सत्तारूढ़ दलों की राजनीति अडानी, अंबानी, नरेंद्र मोदी मोहन भागवत और अमित शाह मिलकर संचालित कर रहे हैं। और विपक्ष की राजनीति एकमात्र सोनिया के परिवार द्वारा संचालित की जा रही है। सत्ता रूढ़ दलों की राजनीति में चार अलग-अलग परिवारो के लोग हैं। इनमें तीन सामाजिक दिशाओं के लोग शामिल हैं जबकि विपक्ष की राजनीति एक परिवार तक सीमित है। मैं समझता हूं की राजनीति को किसी एक परिवार से बाहर निकलना चाहिए 70 वर्ष के बाद यह पहला मौका है जब भारत की सत्ता किसी परिवार के हाथों से बाहर निकली है।

22.आगामी लोकसभा चुनाव और पक्ष-विपक्ष की भूमिकाः

अब लोकसभा चुनाव के लिए देश लगभग तैयार हो रहा है। पक्ष और विपक्ष दोनों ही सत्ता संघर्ष के लिए लगातार नए-नए तरीके खोज रहे हैं। देश का राजनैतिक वातावरण दो दिशाओं में केंद्रित हो गया है। एक में नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अमित शाह, मोहन भागवत की टीम जी जान से लगी हुई है तो दूसरी ओर राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार की जोड़ी भी उतनी ही मजबूती से टक्कर दे रही है। नरेंद्र मोदी की टीम भ्रष्टाचार नियंत्रण, भौतिक विकास और हिंदुत्व को चुनाव के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे मान रही है तो विपक्ष जातिवाद, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, तानाशाही विरोध को आधार बनाकर चुनाव में उतारना चाहता है। एक तरफ नरेंद्र मोदी सरीखे एक ईमानदार और कुशल नेता का नेतृत्व है तो दूसरी ओर भी नीतीश कुमार इन मामलों में बहुत कमजोर नहीं है। नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण का दाव खेला तो नीतीश कुमार ने जातिवादी आरक्षण को उसकी काट बना दिया। इस तरह दोनों ही पक्ष लगातार दांव पेंच में उलझे हुए हैं। मैं भी इस टकराव में अपने पक्ष पर विचार किया। यह बात तो बहुत अच्छी है कि नरेंद्र मोदी सरीखे ईमानदार के समक्ष नीतीश कुमार सरीखा ईमानदार और सुलझा हुआ व्यक्ति टक्कर दे रहा है लेकिन नीतीश कुमार ने जिस तरह जातिवाद को राजनैतिक हथियार बनाया है वह हथियार भले ही राजनैतिक दृष्टि से लाभकारी हो किंतु इसके दूरगामी परिणाम बहुत बुरे होंगे। युद्ध में हवा में जहर घोलना तात्कालिक रूप से भले ही मजबूरी दिखती हो किंतु भविष्य में अपने ही परिवार को इस जहर के दुष्परिणाम पीढ़ियों तक भुगतने पड़ेंगे। यद्यपि महिला आरक्षण भी समाज के लिए घातक है किंतु उस आरक्षण के दबाव में जातिवाद को प्रोत्साहन देना कई गुना अधिक घातक होगा। मैं आशा करता हूं कि आगामी लोकसभा चुनाव में भारत की जनता हिंदुओं में फूट डालने के उद्देश्य से जातिवाद को बढ़ाने के प्रयत्नों से सावधान रहेगी। मैं तो नरेंद्र मोदी के पक्ष में हूं आप क्या सोचते हैं वह आगे पता चलेगा....।

पहले नरेंद्र मोदी का इसलिए पक्षधर था क्योंकि नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुस्लिम सांप्रदायिकता को मजबूती से कमजोर किया और अब मैं नरेंद्र मोदी का इसलिए भी मुरीद बन गया क्योंकि उन्होंने परिवारवाद का विरोध करते हुए परिवार व्यवस्था का समर्थन किया। सच्चाई यह है कि भारत का कोई भी अन्य राजनैतिक दल परिवार व्यवस्था को उतनी मान्यता नहीं देता जितनी संघ परिवार और नरेंद्र मोदी देते हैं। कल दशहरे में रावण दहन के समय भी नरेंद्र मोदी ने जातिवाद और क्षेत्रीयता का खुलकर विरोध किया। अन्य कोई भी राजनैतिक दल जातिवाद, सांप्रदायिकता और क्षेत्रवाद का इतना खुलकर विरोध नहीं करता जितना नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। मैं भी सांप्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद का पूरी तरह विरोधी हूँ इसलिए मैं नरेंद्र मोदी का पक्षधर हूँ। मैं नीतीश कुमार का भी समर्थक रहा हूँ लेकिन नीतीश कुमार ने जिस तरह जातिवाद का समर्थन शुरू किया इसके कारण नीतीश की तुलना में नरेंद्र मोदी की नीतियां अधिक अच्छी हैं।