विविध विषयों पर मुनि जी का लेख (भाग २) GT-441
20-राजनिती की बेढंगी चाल -
राजनीति अपना रंग किस प्रकार बदलती है राजनीति की भाषा किस तरह अन्य भाषाओं से अलग होती है इसका प्रमाण कल देखने को मिला। असम में राहुल गांधी ने यह स्पष्ट किया कि मेरे कार्यकर्ता किसी प्रकार का कानून नहीं तोड़ेंगे क्योंकि हम तो कानून का पालन करने वाले लोग हैं साथ ही हमारे कार्यकर्ता बब्बर शेर के समान है और अगर हमारे कार्य में कोई बैरियर या रुकावट आएगी तो उसे उसी तरह तोड़ देंगे जैसे कल पुलिस की सारी बेरिकेटिंग कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तोड़ दी। कांग्रेस के कार्यकर्ता कानून नहीं तोडेंगे पुलिस का घेरा पूरी तरह तोड़ सकते हैं। असम के मुख्यमंत्री ने यह कहा की जिन लोगों ने पुलिस का घेरा तोड़ा है इन लोगों पर कानून के अनुसार कार्यवाही की जाएगी उन पर विभिन्न मुकदमे लगाए जाएंगे लेकिन लोकसभा चुनाव तक उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। समझ में नहीं आया की राजनीति किस प्रकार की भाषा बोलती है। कोई कानून नहीं तोडेंगे और पुलिस का घेरा पूरी तरह तोड़ देंगे मुकदमे कायम किए जाएंगे लेकिन अभी गिरफ्तारी नहीं होगी यह ढुलमुल बातें हैं।
21-26 जनवरी से हो साम्प्रदायिकता का निवारण -
आज भारत का गणतंत्र दिवस है। हम देश की प्रमुख समस्याओं की चर्चा कर रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले से ही भारत की प्रमुख समस्या संप्रदायिकता रही है। स्वतंत्रता के पहले जिन्ना और सावरकर दोनों सांप्रदायिकता का नेतृत्व कर रहे थे। स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू और गोडसे ने सांप्रदायिकता का दायित्व स्वीकार कर लिया और लगातार सांप्रदायिकता को बढ़ाते रहे। सांप्रदायिकता से देश को बहुत नुकसान हो चुका है और यदि सांप्रदायिकता बढ़ती रही तो देश को और भी नुकसान संभव है इसलिए सांप्रदायिकता का समाधान होना चाहिए। सांप्रदायिकता का समाधान दो तरीके से हो सकता है एक है कानून के माध्यम से बल प्रयोग करके और दूसरा है सामाजिक माध्यम से बहिष्कार करके। सौभाग्य से पिछले 10 वर्षों से नरेंद्र मोदी कानून के माध्यम से सांप्रदायिकता को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं दूसरी ओर मोहन भागवत भी लगातार बहिष्कार के माध्यम से सांप्रदायिकता के बहिष्कार की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह गोडसे और नेहरू ने सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया था उसी तरह अब नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत मिलकर सांप्रदायिकता से देश को मुक्त कर देंगे। अब देश को गांधी और राम के संतुलन मार्ग की जरूरत है। देश इस संतुलित मार्ग पर चल पड़ा है।
22-क्रांग्रेस के लिए इतनी निराषा उचित नहीं-
मुझे याद है की 60 वर्ष पहले हमारे नगर पालिका के चुनाव में एक उम्मीदवार के जीतने की पूरी संभावना थी वह बहुत प्रतिष्ठित थे दूसरी ओर जो दूसरा उम्मीदवार था वह चालाक निकला उसने चुनाव के पहले ही अपनी हार मान ली और उसने सिर्फ यह निवेदन किया कि मेरी जमानत बचा दी जाए। घर-घर जाकर उसने कहा कि मैं चुनाव इसलिए लड़ रहा हूं कि मेरी इज्जत बच जाए मेरी जमानत बच जाए मुझे जीतने के लिए वोट नहीं चाहिए जब चुनाव की गिनती हुई वहीं हारा हुआ उम्मीदवार जमानत बचाते बचाते जीत गया। लगता है कि कांग्रेस पार्टी भी अब यही दाव चल रही है। कल कांग्रेस के अध्यक्ष ने यह घोषणा करके एक समस्या पैदा कर दी कि यह अंतिम चुनाव हो रहा है अगर यह चुनाव भी भारतीय जनता पार्टी इसी तरह भारी बहुमत से जीत गई तो कांग्रेस पार्टी के लिए यह अंतिम चुनाव होगा भविष्य में किसी प्रकार के चुनाव की कोई संभावना नहीं है। इस तरह कांग्रेस पार्टी ने अप्रत्यक्ष रूप से अब साफ कर दिया है कि यदि नरेंद्र मोदी को दो तिहाई बहुमत मिल जाता है तो वह संविधान में मनमा ने संशोधन कर लेंगे और चुनाव इस तरह टाल सकते हैं जिस तरह कांग्रेस पार्टी समय-समय पर करती रही है। इस के आधार पर कांग्रेस पार्टी ने यह स्वीकार कर लिया है कि वह लड़ाई में तो शामिल नहीं है लेकिन भारतीय जनता पार्टी को दो तिहाई बहुमत नहीं मिलना चाहिए।मेरे विचार से कांग्रेस पार्टी को इतना निराश नहीं होना चाहिए। सन 75 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तब भी भारतीय जनता पार्टी इतनी निराश नहीं हुई थी जितनी निराशा आज कांग्रेस को देख रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी विपक्षी दल में बैठना भी जानती है और कांग्रेस विपक्ष में बैठना नहीं जानती है इसलिए वह इतनी निराशा है। यदि आपको राजनीति करनी है तो धैर्य तो रखना ही होगा।
23-गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि होगा लोक स्वराज की मांग -
30 जनवरी थी दिन के 11ः00 बजे इस बात की समीक्षा करने का अवसर था कि आज भारत में गांधी की यह दुर्दशा क्यों हुई। यह बात तो बिल्कुल साफ है कि यदि आज देश में खुला मतदान हो जाए तो गांधी के विरोध में 90ः वोट पड़ेंगे लेकिन यह बात भी विचारणीय है कि इसमें गलती किसकी हुई। गांधी को दो लोगों ने नुकसान किया सावरकर गांधी और गांधी विचारों के विरोधी थे नेहरू गांधी विचारों के विरोधी थे। नेहरू सत्ता में आए सावरकर कमजोर हो गए नेहरू ने सत्ता के बल पर गांधी विचारों की हत्या कर दी गांधी को मानने वाले गांधीवादी नेहरू से धोखा खा गए और गांधीवादी नेहरू के द्वारा दी गई सुविधाओं के चक्कर में ही गांधी को भुला बैठे। नेहरू ने गांधी को कितना धोखा दिया यह इस बात से स्पष्ट है कि भारत का विभाजन नेहरू पटेल और अंबेडकर ने स्वीकार किया था गांधी ने नहीं। लेकिन सावरकर वाडियो ने सारा दोष गांधी पर डाल दिया और गांधीवादी चुप रहे किसी गांधीवादी ने आज तक सामने आकर नहीं कहा कि विभाजन में नेहरू पटेल और अंबेडकर दोषी थे। इसलिए अब समय आ गया है कि हम गांधी विचारों को आगे बढ़ा्वे। अब समय आ गया है कि हम नेहरू और अंबेडकर को किनारे करें अब समय आ गया है कि लोग स्वराज की आवाज बुलंद करें। अब समय आ गया है कि जब तक लोकस्व राज्य की आवाज मजबूती से नहीं उठाती है तब तक हम नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत को ही स्वीकार करें। किसी भी हालत में गांधी को धोखा देने वाले नेहरू परिवार और सावरकर वाडियो को आगे नहीं बढ़ने देना है, यही आज का 30 जनवरी का संदेश है।
24-INDI गठबन्धन और परिवारवाद
इंडिया गठबंधन धीरे-धीरे सच्चाई की तरफ बढ़ रहा है। अभी एक सप्ताह पहले ही नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन छोड़ दिया कल ही ममता बनर्जी ने भी इंडिया गठबंधन छोड़ दिया और यह घोषणा कर दी कि इंडिया गठबंधन के एक प्रमुख घटक कांग्रेस पार्टी को 543 में से 43 सीट भी नहीं मिलेगी। इस प्रकार की भविष्यवाणी से इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस पार्टी की बहुत छीछालेदर हुई है। विचारणीय प्रश्न यह है यह गठबंधन कितनी मेहनत से बना था और मिनट में ही ऐसा लगा जैसे कि बहुत मेहनत से बनाई गई खीर में छिपकली दिख गई हो। अब तो भविष्य में ऐसा दिखता है कि इंडिया गठबंधन में सिर्फ तीन प्रकार के लोग रह जाएंगे एक कांग्रेस दूसरे मुसलमान और तीसरे कम्युनिस्ट बाकी सारे लोग धीरे-धीरे या तो इंडिया गठबंधन छोड़ देंगे या निकाल दिए जाएंगे क्योंकि अवसरवादी गठबंधनों में कभी एकता नहीं बन सकती। कल ही हमने झारखंड में देखा है कि हेमंत सोरेन के जेल जाते ही वहां यह लड़ाई शुरू हो गई कि हेमंत के परिवार वालों को ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के बड़े पदों पर परिवार का ही पहला अधिकार होता है कितनी बेशर्मी के तर्क हैं लेकिन दिए जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस पार्टी का यह सिद्धांत ही है कि महत्वपूर्ण पदों पर केवल परिवार का ही पहला अधिकार होता है। इतनी बेशर्म तर्क के बाद भी अनेक कांग्रेसी नेहरू खानदान की वकालत करते रहते हैं क्योंकि रोजी-रोटी का सवाल है इस मामले में मैं नेहरू परिवार पर कोई प्रश्न नहीं कर रहा मैं तो उन कांग्रेसियों पर कर रहा हूं कि वह किसी एक परिवार की दलाली क्यों कर रहे हैं।
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