भावना और बुद्धि के संतुलन का मार्ग है आर्यसमाज: GT 442

भावना और बुद्धि के संतुलन का मार्ग है आर्यसमाज:

मैंने विचार शक्ति आर्य समाज से प्राप्त की है मुझे गर्व है कि मैं आर्य समाज से जीवन भर जुड़ा रहा मेरा परिवार पहले भी पौराणिक था आज भी पौराणिक है फिर भी मेरी यह मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति में भावना और बुद्धि का संतुलन होना चाहिए। बुद्धि व्यक्ति को नास्तिकता की तरफ ले जाती है भावना आस्तिकता की तरफ ले जाती है दोनों का ही अतिवाद नुकसान करता है इसलिए व्यक्ति को दोनों ही मामले में संतुलन बनाकर रखना चाहिए। वर्तमान दुनिया में यह संतुलन बिगड़ रहा है या तो लोग अतिवादी भावना प्रधान हो रहे हैं या अतिवादी बुद्धि प्रधान। हिंदू मुसलमान ईसाई यह अतिवादी भावना प्रधान माने जाते हैं धार्मिक लोग भावना प्रधान माने जाते हैं दूसरी ओर साम्यवादी बुद्धि प्रदान माने जाते हैं साम्यवादी राजनीति की तरफ बहुत ज्यादा झुके रहते हैं मेरे विचार से हमें आर्य समाज और सनातन धर्म की बीच संतुलन का मार्ग चुनना चाहिए अतिवादी भावना हमें भौतिक नुकसान करती है अतिवादी तर्क हमें नैतिक गिरावट की ओर ले जाता है आज दुनिया में नैतिक पतन बढ़ाने का कारण इन दोनों का अतिवाद ही है मेरा अपना सुझाव है कि हम भावना और बुद्धि के संतुलन का मार्ग पकडें। मैं अपने को दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति मानता हूं और उसका कारण यह मानता हूं कि मैंने भावना और बुद्धि के संतुलन का मार्ग खोज लिया है।