भारत में दो संस्कृतियों के बीच सीधा टकराव देखने को मिल रहा है एक तरफ है सरिया की संस्कृति दूसरी तरफ है मनुस्मृति।

आमतौर पर भारत में दो संस्कृतियों के बीच सीधा टकराव देखने को मिल रहा है एक तरफ है सरिया की संस्कृति दूसरी तरफ है मनुस्मृति। इन दोनों के बीच में जो मानवता की संस्कृति को मजबूत होना चाहिए था उस संस्कृति का तो कहीं नंबर ही नहीं है क्योंकि सरिया और मनुस्मृति के बीच में ही सारी चर्चा आकर केंद्रित हो जाती है । इस संबंध में हम लोगों ने बहुत गहराई से विचार किया और यह पाया कि दोनों के बीच मानवता और धर्मनिरपेक्षता को स्थापित करना कठिन है क्योंकि सरिया संस्कृति के पक्ष में नेहरू परिवार और साम्यवादी हिंदू डटकर खड़े हैं । यह नेहरू परिवार और कम्युनिस्ट कभी सरिया का समर्थन नहीं करते सरिया के मामले में चुप रहते हैं लेकिन यह खुलकर मनुस्मृति का विरोध करते हैं। स्पष्ट है कि दोनों का उद्देश्य सरिया का समर्थन करना हीं है भले ही वे सरिया के मामले में चुप हो जाते  लेकिन मनुस्मृति का विरोध करने से ही यह बात साफ हो जाती है कि उनके नीयत बहुत खराब है। आप गंभीरता से सोचिए कि जो भी हो लोग चाहे वह अंबेडकरवादी हो अथवा नेहरूवादी यह मनुस्मृति का विरोध करने के बाद कभी सरिया का विरोध नहीं करते आप कभी एक भी ऐसे नेहरू परिवार या अंबेडकरवादी को नहीं देखे होंगे जो कभी सरिया का विरोध करता हो। क्योंकि सरिया के मामले में तो उनके मुंह में ताला बंद हो जाता है और मनुस्मृति को गाली देने के लिए ही वह दिन-रात उछलते रहते हैं । ऐसी स्थिति में हम लोग के सामने यह संकट पैदा हो जाता है कि हम मनुस्मृति के पक्ष में खड़े हो या तटस्थ रहे क्योंकि मनुस्मृति का विरोध करने वालों की नियत खराब है और यह सरिया के पक्षधर है और हमारी ऐसी स्थिति में मजबूरी बन जाती है क्योंकि हम मनुस्मृति और सरिया इन दोनों के पक्ष में नहीं है हम मानवतावादी हैं । सारी स्थिति पर गंभीरता से विचार करने के बाद हम लोगों ने यह महसूस किया कि यदि सरिया के पक्ष में किसी प्रकार का षड्यंत्र करने की कोशिश होती है तो हम मनुस्मृति के पक्ष में भले ही खड़े हो जाए लेकिन इस षड्यंत्र को सफल न होने दे । मनुस्मृति कुछ मामलों में गलत है और अनेक मामलों में सही है और सरिया सब मामलों में गलत है । इसलिए हम स्वतंत्र विचारक के रूप में पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करेंगे लेकिन सरिया और मनुस्मृति का यदि कहीं सीधा टकराव होता है तो हम सरिया का विरोध करेंगे मनुस्मृति के मामले में चुप हो सकते हैं। यही सोचकर हम लोगों ने तय किया है कि हम सरिया का पूरी तरह विरोध करेंगे और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करेंगे हमें इस बात की खुशी है की वर्तमान समय में संघ और नरेंद्र मोदी एक साथ सरिया के विरुद्ध धर्मनिरपेक्षता के समर्थन में खड़े हैं।