विषय: महिला और पुरुष के बीच संबंधों का संतुलन

 

13 अक्टूबर — प्रातःकालीन सत्र
विषय: महिला और पुरुष के बीच संबंधों का संतुलन

महिला और पुरुष के बीच स्वाभाविक रूप से एक विपरीत आकर्षण होता है। इस आकर्षण की तुलना कई बार पेट्रोल और आग से की जाती है — दोनों के बीच यदि दूरी बहुत घट जाए, तो विस्फोट की संभावना रहती है; और यदि दूरी बहुत बढ़ जाए, तो सृजन की प्रक्रिया बाधित होती है।

अतः यह प्रश्न कि महिला और पुरुष के बीच दूरी घटनी चाहिए या बढ़नी चाहिए, समाज के हस्तक्षेप का विषय नहीं होना चाहिए। यह निर्णय परिवार या स्वयं व्यक्ति को करना चाहिए।

जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपना कीमती हीरे का हार तिजोरी में सुरक्षित रखता है और यदि वह चोरी हो जाए तो यह गंभीर अपराध माना जाता है; किंतु वही हार यदि कोई व्यक्ति सड़क पर रख दे और फिर चोरी हो जाए, तो यह साधारण अपराध माना जाता है।

इसी प्रकार नई समाज व्यवस्था में हम यह सिद्धांत अपनाएंगे कि—
यदि कोई महिला अपने सतीत्व या सम्मान को सुरक्षित रखती है और उस पर कोई आक्रमण होता है, तो वह गंभीर अपराध माना जाएगा।
परंतु यदि कोई महिला स्वेच्छा से पुरुष के साथ निकटता बढ़ाती है और ऐसी स्थिति में उस पर कोई आक्रमण होता है, तो वह साधारण अपराध माना जाएगा। अर्थात् महिला द्वारा दूरी घटाने या बढ़ाने की भूमिका के आधार पर अपराध की गंभीरता तय होगी। इसलिए महिलाओं को भी अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। बंगाल में हाल ही में जो घटना घटी है, उसे इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जो कहा कि “महिलाओं को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी समझनी चाहिए”, वह विचार उचित है।

नई समाज व्यवस्था में हम यह व्यवस्था करेंगे कि—
जो महिलाएँ पुरुषों से दूरी बनाकर रखना चाहती हैं, उन पर होने वाला आक्रमण गंभीर अपराध माना जाएगा।
और जो महिलाएँ स्वेच्छा से निकटता बढ़ाने का निर्णय लेती हैं, उन पर होने वाला आक्रमण सामान्य अपराध माना जाएगा।