मुस्लिम आतंकवाद
पिछले कुछ सौ वर्षो से दुनियां की चार संस्कृतियो के बीच आगे बढने की प्रतिस्पर्धा चल रही है । 1 भारतीय 2 इस्लामिक 3 पश्चिमी 4 साम्यवादी । भारतीय संस्कृति विचारो के आधार पर आगे बढने का प्रयास करती है जिसे ब्राम्हण संस्कृति कहा जाता है । इस्लामिक संस्कृति संगठन शक्ति के बल पर आगे बढती है जिसे छत्रिय संस्कृति कहते है । इसाई या पश्चिमी संस्कृति धन को आधार बनाती है और वैष्य संस्कृति कही जाती है । साम्यवादी संस्कृति अव्यवस्था को आधार बनाती है और शुद्र संस्कृति मानी जाती है। इन चारो संस्कृतियो मे भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति हिंसा को अंतिम शस्त्र मानती है तो इस्लामिक और साम्यवादी संस्कृति हिंसा को पहला शस्त्र मानती है । ये दोनो संस्कृतियां किसी न किसी रूप मे राजनैतिक शक्ति के साथ भी तालमेल बनाकर रखती है जबकि अन्य दो दूरी बनाकर रहती है ।
उग्रवाद और आतंकवाद के बीच थोडा फर्क होता है । उग्रवाद हिंसक विचारो तक सीमित होता है । कोई प्रत्यक्ष क्रिया नही करता जबकि आतंकवाद प्रत्यक्ष रूप से सक्रिय होता है । वर्तमान समय मे संघ परिवार को उग्रवादी कह सकते है और आतंकवादी मुसलमानो और नक्सलवादी साम्यवाद को आतंकवादी कहा जा सकता है ।
इस्लाम एक विचारधारा है और मुसलमान उसे मानने वाले । धार्मिक मुसलमान कभी न तो उग्रवादी होते है न ही आतंकवादी किन्तु संगठित मुसलमान उग्रवादी तो होता ही है आतंकवादी भी हो सकता है । आम तौर पर सूफी मत मानने वाले अधिक मात्रा मे धार्मिक होते है तो अन्य मत मानने वाले मुसलमानो मे धार्मिक कम और उग्रवादी अधिक होते है । यदि हम साम्यवाद की चर्चा करे तो साम्यवाद मे कोई भी व्यक्ति शान्तिप्रिय हो ही नही सकता । या तो उग्रवादी होगा या आतंकवादी । किन्तु साम्यवाद अब विशेष चर्चा का विषय नही है क्योकि साम्यवाद पूरी दुनिया से हट गया है और भारत मे आंशिक रूप मे नक्सलवाद के रूप मे अंतिम सांस गिन रहा है । फिर भी साम्यवादी विचारधारा के कुछ लोग अब भी बचे हुए है । सिद्ध हो चुका है कि पूरी दुनियां मे साम्यवादी सर्वाधिक चालाक होते है और मुसलमान या संघ के लोग सर्वाधिक भावना प्रधान । साम्यवादी आमतौर पर मोटीवेटर होते है तो मुसलमान या संघ परिवार के लोग मोटिवेटेड । स्वाभाविक है कि भारत का साम्यवाद अब उग्रवादी मुसलमानो के कंधो का सहारा लेकर स्वयं को आगे बढा रहा है । फिर भी अब प्राथमिकता के आधार पर नक्सलवाद या साम्यवाद की चर्चा करना व्यर्थ है । अब तो इस्लामिक उग्रवाद और आतंकवाद की ही चर्चा उचित है ।
दुनिया मे जहां भी संगठित मुसलमान है वे किसी अन्य को कभी भी शान्ति से नही रहने देते क्योकि शान्त रहना उन्होने बचपन से सीखा ही नही है । उन्हे बचपन से सिखाया गया है कि कुरान ही अंतिम सत्य है और हजरत मोहम्मद ही अंतिम पैगम्बर । उन्हे यह भी बताया गया है कि संगठन ही शक्ति है और शक्ति ही सफलता का एकमात्र आधार । ये पूरी तरह भावना प्रधान होते है । इसलिये ये अपनी कुरान की शिक्षाओ से अलग जा ही नही सकते । ये कभी सहजीवन मे विश्वास नही करते । इनका सहजीवन अपने संगठन तक सीमित है । इनका व्यक्तिगत जीवन संगठन प्रधान होता है । यही कारण है कि इनमे से कुछ अतिवादी लोग आतंकवाद की दिशा मे चले जाते है ।
उग्रवाद को तो कुछ सीमा तक समझाया जा सकता है और सामाजिक या प्रशासनिक आधार पर डराया भी जा सकता है किन्तु आतंकवाद को सिर्फ नष्ट ही किया जा सकता है । न उन्हे समझाया जा सकता है न डराया जा सकता है । इसलिये आतंकवाद के साथ कोई अन्य तरीके का प्रयोग करना घातक होता है । दुनियां मे जहा भी संगठित मुसलमान है वे न स्वयं शान्ति से रहेगे न दूसरो को रहने देंगे । यहां तक कि यदि उन्हे लड़ने के लिये अन्य संस्कृतियो के लोग नही मिलेंगे तब वे आपस मे ही अपने इस्लामिक संगठनो के साथ लडेंगे किन्तु लडेंगे अवष्य । वे कभी शान्त रह ही नही सकते । सारी दुनियां अब तक साम्यवादी खतरे से निपटने मे लगी थी । इसलिये इनका विस्तार होता रहा । अब साम्यवाद के समापन के बाद पूरी दुनियां की पहली प्राथमिकता इस्लामिक आतंकवाद को समाप्त करने की है भले ही उसके लिये अनैतिक अमानवीय तरीको का उपयोग क्यो न करना पडे । संगठित मुसलमानो को भयभीत करना ही होगा । भले ही उसके लिये सांप का प्रयोग न करके रस्सी को ही सांप क्यो न बताना पडे । दुनियां एक जुट हो रही है । भारत और भारतीय संस्कृति इस्लामिक आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित है । सबसे अधिक खतरा भारत को है इसलिये भारत को ही इस मामले मे अधिक सावधान रहना है। भारत दुनियां की एकता मे निरंतर अपना प्रभाव बढा रहा है । आतंकवाद को रोकना पहली प्राथमिकता बनती जा रही है । पश्चिमी देशो के साथ पूरा तालमेल बनाया जा रहा है तो साम्यवादी देशो के साथ भी अच्छे सम्पर्क के प्रयास हो रहे है क्योकि संगठित इस्लाम ने अपने स्वभाव के अनुसार साम्यवादियो को भी चीन या रूस मे अशान्त कर रखा है ।
हम भारत मे इस्लामिक उग्रवाद और आतंकवाद के खतरे से निपटने की चर्चा करे । 70 वर्षो तक उनकी संगठन शक्ति का लाभ उठाते हुए लगभग सभी राजनैतिक दलो ने उनके साथ तालमेल किया । उक्त कालखंड मे रडार पर साम्यवाद पहले था इसलिये इस्लामिक उग्रवाद का ज्यादा महत्व नही था । अब पहली प्राथमिकता इस्लामिक कट्टरवाद से निपटना है इसलिये नरेन्द्र मोदी के आने के बाद इस दिशा मे सक्रियता बढी हैं । कांग्रेस पार्टी तथा अन्य विपक्षी दल भी इस दिशा मे सोचने को मजबूर हुए है। लगता है जल्दी ही कटटरपंथी मुसलमानो को इस पार या उस पार मे से एक को चुनना पडेगा। अब उन्हे दुनियां के अन्य देशो से समर्थन या सहयोग मिलने से रहा । भारत के विपक्षी दल भी अब उनकी ब्लैकमेलिंग से सतर्क हो गये है । साथ ही संघ परिवार येन केन प्रकारेण इनका मनोबल तोडने के लिये सक्रिय है । अन्य शान्ति प्रिय हिन्दू भी यह उचित समझते है कि इस्लामिक उग्रवाद को भयभीत करने के लिये संवैधानिक अथवा असंवैधानिक का विचार किये बिना समर्थन किया जाये । कुछ दिनो के लिये नैतिकता को भी किनारे रखा जा रहा है । मै जानता हॅू कि यह बात हिन्दुत्व की मूल विचारधारा से बिल्कुल विपरीत होकर इस्लामिक विचारधारा के समकक्ष है किन्तु हिन्दुओ मे आम धारणा यही बनती जा रही है कि संगठित इस्लाम को सदा-सदा के लिये समाप्त ही कर देना चाहिये भले ही कुछ अनैतिकता का सहारा क्यो न लेना पडे । आज खुले मे नमाज अथवा अलीगढ युनिवर्सिटी मे जिन्ना की मूर्ति जैसे अप्रासंगिक विषय उठाकर जन जागरण किये जाने को भरपूर समर्थन मिल रहा है । वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि अब भारतीय मुसलमानो को धर्म और संगठन मे से एक को चुनना होगा । अब न्यायपालिका से भी वामपंथी विचारो के लोग हटते जा रहे है विधायिका मे भी अब पहले की स्थिति नही बची है । कार्यपालिका भी निरंतर रूख बदल रही है । उचित है कि भारतीय मुसलमान अपनी 1400 वर्ष की जारी नीतियों पर फिर से विचार करे । मेरी अपने मुसलमान भाइयो से कुछ अपेक्षाए है । 1 वे कश्मीर का भारत मे पूर्ण विलय मान ले और कश्मीर मे टकरा रही उग्रवादी विचारधारा को बलपूर्वक कुचले जाने का आंख मूंदकर समर्थन करे । 2 वे रोहिग्या मुसलमानो का किसी भी आधार पर समर्थन करके विश्वास को खतम न होने दे । 3 वे कुरान को अंतिम सत्य मानने की धारणा को स्वयं तक सीमित रखे । उस आधार पर किसी तरह की क्रिया मे संलग्न न हो कुरान के धार्मिक अंश का अनुकरण करे तथा संगठनात्मक अंश को छोड दे । 4 संघ परिवार चाहे जितना भी उत्तेजित करने का प्रयास करे हमारे मुसलमान भाई किसी भी परिस्थिति मे जरा भी उत्तेजित न हो । किसी भी परिस्थिति मे हिन्दू मुसलमान का ध्रुवीकरण मुसलमानो के लिये घातक होगा । 5 अल्पकाल के लिये शुक्रवार की नमाज मे नमाज के बाद होने वाली तकरीर से अपने को दूर कर ले । 6 संगठन की जगह सहजीवन को महत्वपूर्ण स्थान दे ।
मैं एक हिन्दू हॅू । मै संघ परिवार की गतिविधियों और कार्य प्रणाली को कभी हिन्दूत्व की विचारधारा के साथ नही देखता । फिर भी मै मानता हॅू कि इस्लामिक कट्टरवाद को समाप्त करने मे यदि संघ परिवार कुछ अनैतिक भी करता है तो हमे चुप रहना चाहिये क्योकि नैतिकता की उम्मीद नैतिक लोगो के साथ ही करने का समय आ गया है । यदि अनैतिक लोगो के साथ कोई अनैतिक व्यवहार करता है तो हमे बीच मे नही कूदना चाहिये । वैसे तो मुस्लिम आतंकवाद पूरी दुनियां के लिये सबसे बडी समस्या है किन्तु भारत के लिये यह और भी अधिक खतरनाक है । वर्तमान परिस्थितियां अनुकूल है । भारत को इस समस्या से समाधान के लिये पहल करनी चाहिये । इस्लामिक आतंकवाद और उग्रवाद के बीच एक गठजोड सरीखा है । इसलिये आतंकवाद से तो सरकार निपट रही है किन्तु इस्लामिक उग्रवाद से भी हम सब लोगो को एक जुट होकर निपटना होगा । प्रज्ञा पुरोहित असीमानंद गलत थे या नही यह प्रश्न वर्तमान समय मे अनावश्यक है सच्चाई जो हो किन्तु वर्तमान परिस्थिति मे हमे चाहिये कि हम ऐसे प्रश्नो को उठाकर समाधान को नुकसान न पहुंचावे । कश्मीर या नक्सलवाद से सरकार ठीक निपट रही है । मेरे विचार से तो और कठोरता से निपटा जाना चाहिये । जो लोग वार्ता की सलाह दे रहे है उनकी नीयत खराब है । ऐसे लोगो को कठघरे मे खडा किया जाना चाहिये । साथ ही हमे व्यावहारिक दृष्टिकोण भी अपनाना चाहिये । सभी मुसलमान एक समान नही है । नरेन्द्र मोदी के बाद धार्मिक मुसलमानो की संख्या धीरे धीरे बढ रही है । उचित होगा कि हम धार्मिक मुसलमानो के साथ अच्छा व्यवहार करे । प्रयत्न करे कि हम उनके साथ सामान्य से भी अधिक अच्छा व्यवहार करे जिससे धार्मिक और संगठित मुसलमानो के बीच एक साफ-साफ विभाजन रेखा दिख सके ।
मै देख रहा हॅू कि अब भी वामपंथ प्रभावित लोग किसी न किसी बहाने दुनियां को एक जुट होने के विरूद्ध कुछ न कुछ लिखते बोलते रहते है । ऐसे लोगो मे बडी संख्या मे तो वामपंथ प्रभावित लोग है किन्तु साथ ही कुछ उच्च नैतिकता का मापदंड रखने वाले हिन्दू भी उनकी हां मे हां मिलाते है । इस संबंध मे हमारी रणनीति साफ होनी चाहिये । हम इस मामले मे पूरी तरह भारत सरकार के हर कदम का समर्थन करते है । भले ही इस मामले मे अमेरिकन ग्रुप के साथ मोर्चा बनाने का प्रयत्न ही क्यो न हो । इस मामले मे संघ परिवार यदि उचित कदम उठाता है तो हम उसका समर्थन करे किन्तु यदि संघ परिवार कोई अनुचित कदम उठाता है जो अनैतिक और अन्यायपूर्ण है तब भी उस परिस्थिति मे हमे चुप रहना चाहिये क्योकि विशेष परिस्थिति मे शत्रु का शत्रु मित्र होता है और इस्लामिक आतंकवाद हमारा सबसे बडा शत्रु है ।
मै मानता हॅू कि यदि हम सोच समझकर आगे बढे तो भारत से इस्लामिक आतंकवाद सदा-सदा के लिये समाप्त होना संभव है ।
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