नई राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत जो संसद गठित होगी, उसमें प्रतिनिधित्व की केवल एक ही स्पष्ट प्रणाली होगी।
नई राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत जो संसद गठित होगी, उसमें प्रतिनिधित्व की केवल एक ही स्पष्ट प्रणाली होगी। या तो संसद पूरी तरह जनप्रतिनिधियों से बनेगी, या फिर पूरी तरह दल-प्रतिनिधियों से। दोनों व्यवस्थाएँ एक साथ नहीं होंगी।
प्रथम प्रणाली:
पूरे देश को 543 क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा। प्रत्येक क्षेत्र से एक-एक व्यक्ति चुना जाएगा। सभी चुने गए प्रतिनिधि निर्दलीय होंगे। ये 543 प्रतिनिधि मिलकर पूरे देश का प्रतिनिधित्व करेंगे और सामूहिक रूप से शासन एवं नीति-निर्धारण की समस्त जिम्मेदारी निभाएँगे। इस व्यवस्था में किसी भी राजनीतिक दल का कोई अस्तित्व नहीं होगा।
द्वितीय प्रणाली:
इस व्यवस्था में व्यक्ति नहीं, बल्कि राजनीतिक दल चुने जाएँगे। पूरे देश के मतदाता दलों को वोट देंगे। किसी दल को जितने प्रतिशत वोट प्राप्त होंगे, उसी अनुपात में उसके प्रतिनिधि संसद में पहुँचेंगे।
चुनाव से पूर्व प्रत्येक दल 543 संभावित सांसदों की एक सूची सार्वजनिक करेगा। प्राप्त मतों के अनुपात के अनुसार उसी सूची से प्राथमिकता क्रम में प्रतिनिधि संसद में प्रवेश करेंगे। इस प्रकार संसद व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दलों का प्रतिनिधित्व करेगी। संसद में निर्णय-प्रक्रिया दलों के आधार पर होगी और दल का वीटो प्रभावी रहेगा।
इन दोनों में से जो भी प्रणाली अधिक उपयुक्त मानी जाएगी, उसी के अनुसार संसद संचालित होगी। यदि कोई तीसरा व्यवहारिक और बेहतर सुझाव सामने आता है, तो उस पर भी विचार किया जा सकता है।
इस विषय पर संविधान सभा और वर्तमान तंत्र संयुक्त रूप से विचार करेंगे और यह निर्णय लेंगे कि देश के लिए कौन-सी प्रणाली अधिक न्यायसंगत, पारदर्शी और प्रभावी है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से हम जनप्रतिनिधि बनाम दल-प्रतिनिधि की दुविधा को पूर्णतः समाप्त करना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य भारत में एक साफ-सुथरी, स्पष्ट और भ्रम-रहित राजनीतिक व्यवस्था लागू करना है।
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