जालसाजी धोखाधडी
किसी व्यक्ति से कुछ प्राप्त करने के उद्देश्य से उसे धोखा देकर प्राप्त करने का जो प्रयास किया जाता है उसे जालसाजी कहते है । जालसाजी, धोखाधडी, ठगी, विश्वासघात आदि लगभग समानार्थी शब्द होते है । बहुत प्राचीन समय से धोखाधडी का उपयोग होता रहा है । यहां तक कि देवताओ तक ने कभी जनहित मे तो कभी अपने व्यक्तिगत हित मे जालसाजी का उपयोग किया । जालसाजी, धोखाधडी पूरी तरह अनैतिक कृत्य भी माना जाता है और आपराधिक कृत्य भी । दोनो के बीच की सीमा रेखा तय करना बहुत कठिन कार्य है । वैसे मिलावट और कम तौलना जैसे अपराध भी जालसाजी के साथ ही जुडे हुए होते है ।
जालसाजी का पूरी दुनियां मे बहुत व्यापक प्रभाव है । व्यक्ति दो समूहो मे बटे हुए है। 1 भावना प्रधान 2 बुद्धि प्रधान । भावना प्रधान लोग शरीफ माने जाते है और बुद्धि प्रधान लोग चालाक । चालाक लोग शरीफ लोगो को धोखा देकर उनसे या उनको ठगने का प्रयास करते है तो बेचारे शरीफ लोग ऐसी ठगी मे फसकर अपना नुकसान उठाते है । धार्मिक मामलो मे ठगी का व्यापक उपयोग होता है । संतो का चोला पहनकर तथा आध्यात्म की भाषा बोलकर धूर्त लोग आसानी से धर्म प्रधान लोगो को ठग लिया करते है । धार्मिक अथवा सामाजिक कार्यो के नाम पर ठगी का प्रयास आमतौर पर पूरे भारत मे प्रचलित है । राजनीति मे तो जालसाजी का व्यापक उपयोग होता ही आया है । पुराने जमाने मे भी विष कन्याओ के माध्यम से अनेक गंभीर घटनाएं होती हुई पायी गई है । वर्तमान समय मे भी राजनीति मे धोखाधडी का खुला उपयोग होता है । यहाँ तक कि राजनीति मे तो इस कार्य को कूटनीति का नाम देकर सफलता का मापदंड बता दिया जाता है । सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर पूरे भारत मे लोग नौकरी के नाम पर ठगे जाते है । सोना-चांदी क्रय-विक्रय अथवा सोना-चांदी के साफ-सफाई के नाम पर ठगी गांव-गांव तक प्रचलित है । भूत-प्रेत के नाम पर भी ठगने वालो का कोई अभाव नही है । यहां तक कि नकली नोट, नकली स्टांप टिकट या नकली रेल की टिकट भी आमतौर पर बिकती रहती है । अच्छे-अच्छे लोग यहां तक कि कभी-कभी बैंक भी नकली नोट को नही पहचान पाते । जमीनो के खरीद-बिक्री मे आप धोखाधडी का व्यापक उपयोग देख सकते है । दूसरे देश के लोग दूसरे देश मे अपने जासूस भेजकर उनसे जो जानकारी इकठ्ठी कराते है उसमे भी कई बार जालसाजी और धोखाधडी का उपयोग होता है । क्या चीज असली है और क्या नकली यह पता लगाना भी कठिन होता जा रहा है । नकली इतिहास लिखा जा रहा है तो नकली धर्म ग्रन्थ तक प्रचारित हो रहा है । आमलोगो को ठगने के लिये असत्य को बार-बार का सत्य के समान स्थापित किया जा रहा है । पूरे भारत मे मंहगाई गरीबी, दहेज, महिला उत्पीडन आदि का ऐसा झूठा आभास करा दिया गया है कि भारत का हर नागरिक इन अस्तित्वहीन समस्याओ से स्वयं को पीडित समझ रहा है । असत्य को बार-बार बोलकर उससे लाभ उठाने वाले आपस मे भी प्रतिस्पर्धा करते दिखते है । चालाक लोग आपस मे भी एक-दूसरे को ठगते रहते है । हर बुद्धि प्रधान व्यक्ति भावना प्रधान व्यक्ति को बेवकूफ बनाकर ठग लेना अपनी खास विशेषता मानता है । अधिक बुद्धि प्रधान कम बुद्धि प्रधान को ठग लेना अपनी सफलता मानता है ।
यदि हम वर्ण व्यवस्था के आधार पर धोखाधडी जालसाजी की समीक्षा करे तो जो लोग ब्राम्हण प्रवृत्ति के है अर्थात विचारक है उन्हे किसी भी परिस्थिति मे कूटनीति का सहारा नही लेना चाहिये । असत्य बोलना या धोखा देना विचारको के लिये पूरी तरह वर्जित है चाहे वह धोखा जनहित मे ही क्यो न हो । किन्तु जब राजनीति की चर्चा शुरू होती है तो राजनीति मे कूटनीति को मान्य किया जाता है । अर्थात एक सीमा तक शत्रु को धोखा दिया जा सकता है । यह अलग बात है कि विपक्षी, विरोधी और शत्रु की अलग-अलग पहचान होनी चाहिये किन्तु शत्रु को धोखा देना योग्यता का मापदंड होता है । भगवान कृष्ण अथवा शिवाजी का उदाहरण स्पष्ट है । अन्य भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते है जिसमे राजाओ ने जनहित मे जालसाजी और धोखाधडी का सहारा लिया । चाणक्य की तो सारी सफलता ही कूटनीति के दावपेंच पर निर्भर रही है । वैश्य प्रवृत्ति के लोगो को कूटनीति का सहारा लेना अनैतिक माना जाता है । लेकिन व्यापारिक प्रतिस्पर्धा मे आंशिक रूप से कूटनीति का उपयोग मान्य परंपरा है । श्रमजीवियो को किसी प्रकार की कोई जालसाजी धोखाधडी या ठगी की कोई आवश्यकता नही पडती । हो सकता है कि श्रमजीवी दूसरो के द्वारा ठगे भले ही जाते है किन्तु वे किसी को ठग भी नही सकते और वैसा करना उनके लिये उचित भी नही हैं ।
अपने व्यक्तिगत हित मे जालसाजी धोखाधडी ठगी या विश्वासघात हमेशा अनैतिक ही माने जाते है चाहे वह कोई भी क्यो न करे । किन्तु जनहित मे यदि ब्राम्हण छोडकर शेष लोग इनका उपयोग करते है तो इस उपयोग को अनैतिक नही माना जाता । इसलिये जालसाजी और धोखाधडी की भी परिस्थिति अनुसार समीक्षा करके उनकी सीमाए समझनी चाहिये । आवश्यक नही है कि हर धोखाधडी अनैतिक ही हो । साथ ही आवश्यक नही है कि हर प्रकार की धोखाधडी नैतिक ही हो । प्रायः हर आदमी अपने किये गये अनैतिक कार्य को नैतिक सिद्ध करने का प्रयास करता है । किन्तु समाज के विचारक वर्ग का कर्तव्य है कि वह ऐसी अनैतिकता को नैतिक स्वरूप प्रदान न होने दे ।
स्पष्ट है कि इस प्रकार के किसी भी अनैतिक कार्य मे उसकी नीयत देखी जाती हैं । यदि उसकी नीयत खराब है तो किसी भी प्रकार की जालसाजी धोखाधडी अनैतिक और आपराधिक कार्य माना जाना चाहिये । किन्तु यदि नीयत ठीक है तब ऐसा कार्य अनैतिक नही भी मान सकते है ।
जालसाजी और धोखाधडी पर नियंत्रण बहुत कठिन कार्य है । क्योकि बचपन से ही बच्चो को डराने के लिये भूत या पुलिस का झूठा सहारा लिया जाता है और धीरे-धीरे उसके संस्कार मे असत्य और चालाकी का समावेश शुरू हो जाता है । इसलिये उससे बचना बहुत कठिन कार्य है ।
आज दुनियां का प्रत्येक व्यक्ति दुहरा चरित्र जी रहा है । हर भावना प्रधान व्यक्ति किसी को धोखा देना गलत समझता है किन्तु उसमे स्वयं की इतनी क्षमता नहीं कि वह दूसरों द्वारा धोखा देने से स्वयं को बचा सके । वैसे तो धर्म के नाम पर बहुत अधिक जालसाजी और ठगी होती रही है किन्तु सबसे ज्यादा जालसाजी और ठगी राजनीति के नाम पर हुई है । धर्म के नाम पर तो सिर्फ व्यक्ति ठगे जाते है समाज नही किन्तु राजनीति सम्पूर्ण समाज को ही गुलाम बना लेती है । धर्म के नाम पर किसी को ईश्वर बनाकर उसके प्रति श्रद्धा पैदा की जाती है किन्तु राजनीतिक व्यवस्था तो एक संविधान बनाकर उसे भगवान सरीखे मानने के लिये संपूर्ण समाज को बाध्य कर देती है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि अन्य किसी प्रकार की धोखाधडी की तुलना मे राजनैतिक व्यवस्था सबसे अधिक विकृत हो गई है । सारी दुनिया शुरू से जानती रही है कि साम्यवादी धोखा देने के मास्टर माइन्ड होते है । जहां ये कमजोर होते है वहां मानवाधिकार की सारी चिंता करने का ठेका सिर्फ साम्यवादियों के पास ही सुरक्षित रहता है किन्तु जहां वे ताकतवर हुए वहां मानवाधिकार नाम की कोई चीज रही ही नहीं । साम्यवाद का पूरा इतिहास जानते हुए आज भी बडी संख्या मे लोग इनसे धोखा खाते है । दूसरी बात यह भी है कि हर आदमी धोखा खाने के मामले मे अक्षम होते हुए भी स्वयं को इतना सक्षम समझता है कि वह किसी से धोखा खा नही सकता । वह शराफत का ऐसा प्रबल पक्षधर बन जाता है कि वह कभी समझदार बनने का प्रयास ही नही करता । हर धूर्त शराफत का प्रबल समर्थक होता है और हर शरीफ तो शराफत का पक्षधर होता ही है इसलिये इस समस्या से निपटना और भी कठिन है । समस्या बहुत विकराल है । समाधान कठिन है। एक ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है कि हर आदमी शराफत छोडकर समझदारी की ओर बढने का प्रयास करे तभी समस्या पर नियंत्रण संभव है । समाज को धूर्तता, ठगी, चालाकी, जालसाजी से बचाना भी आवश्यक है । इसके लिये कानूनी प्रावधान तो है ही किन्तु समाज मे भी जन-जागृति आवश्यक है । समाज मे नैतिकता का पक्ष प्रबल होना चाहिये और अनैतिक लोगो की पहचान का तरीका खोजा जाना चाहिये । यदि समाज के लोग आपस मे मिल बैठकर विचार करने की आदत डाले तो कुछ हद तक इस समस्या का समाधान हो सकता है । वैसे इसके लिये चौतरफा प्रयास करने की आवश्यकता है ।
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