हिन्दू राष्ट्र

हिन्दू राष्ट्र

हिंदू राष्ट्र शब्द दो व्यवस्थाओं को मिलाकर बना हैः - 1. धर्म व्यवस्था 2. राज्य व्यवस्था। हमारी विश्व समाज व्यवस्था में दोनों का एकीकरण प्रतिबंधित था किंतु दुर्भाग्य से मध्यकाल में कुछ स्वार्थी तत्वों ने धर्म और राज्य को एक साथ जोड़ने की पहल की। इसकी शुरुआत चौदह सौ वर्ष पूर्व इस्लाम से हुई और गुलामी के अंतिम शतक 19वीं सदी से भारत में प्रचलित होनी शुरू हुई। भारत में इस एकीकरण का जनक वीर सावरकर को माना जाता है। धर्म और राज्य समाज व्यवस्था के सहायक होते हैं। इसलिए एक दूसरे के पूरक तो हो सकते हैं किंतु एक नहीं हो सकते।

हिंदुत्व और इस्लाम में बहुत फर्क होता है। हिंदुत्व धर्म है तो इस्लाम संप्रदाय, हिंदुत्व गुण प्रधान है तो इस्लाम संगठन, हिंदुत्व अत्याचार और गुलामी सह सकता है किंतु कर नहीं सकता तो इस्लाम अत्याचार और गुलामी सह तो सकता ही नहीं किन्तु अत्याचार और गुलाम बनाने को अपनी प्रगति की सफलता मानता है। वर्तमान दुनियां के लिए इस्लाम दुनियां के सबसे अधिक खतरनाक संगठन के रूप में स्थापित होने के कारण प्राथमिक समस्या बन गया है तो हिंदुत्व दुनियां में शराफत के कारण सहानुभूति और दया का पात्र है। आज पूरे विश्व में इस्लाम से धर्म को खतरा है, मानवता को खतरा है सिर्फ हिंदू या ईसाई तक खतरा सीमित नहीं है।

भारत के गुलामी काल में इस्लाम ने धर्म और राज्य का एकीकरण किया। अनेक मुसलमान राजाओं ने हिंदुओं पर भारी अत्याचार किये तो अनेक ने हिंदुओं के साथ अच्छा व्यवहार भी किया। इस्लाम ने धर्म और राज्य के एकीकरण की पूरी कोशिश की किंतु हिंदुत्व इस्लाम को राज्य और हिंदुत्व को धर्म के रूप में मानने पर अडिग रहा। अंग्रेज शासन के बाद स्थिति बदली। अंग्रेज धर्म और राज्य को अलग अलग मानते थे किंतु मुसलमानों ने मुस्लिम लीग बनाकर दोनों को एक करने की कोशिश शुरू की और बदले में हिंदू महासभा ने भी वही मार्ग पकड़ा। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को पुरानी अतिरंजित कहानियां सुनाई कि किस प्रकार वे भारत के शासक थे और किस प्रकार हिंदुओं को गुलाम बनाए तो हिंदू महासभा ने ठीक विपरीत और अतिरंजित कहानी सुनाई कि किस प्रकार मुसलमानों ने अत्याचार किया। परिणाम हुआ भारत का विभाजन। स्वाभाविक था कि धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण और टकराव बढ़ेगा तो विभाजन स्वाभाविक है और वही हुआ। अंग्रेज भारत को स्वतंत्रता नहीं देना चाहते थे इसलिए वे टकराव की पक्षधर थे किंतु विभाजन के विरुद्ध। पटेल, नेहरू, अंबेडकर की सूझबूझ से विभाजन स्वीकार हुआ। यद्यपि गांधी विभाजन के विरुद्ध थे किंतु उन्होंने सबकी बात मान ली।

विभाजन के बाद भी बड़ी संख्या में हिंदू पाकिस्तान में रहे तो मुसलमान भारत में। जो मुसलमान भारत में रहे उन्हें विश्वास था कि हिंदू आक्रामक नहीं होता इसलिए उन्हें समानता का अधिकार मिलेगा। ऐसे ही कालखंड में एक सांप्रदायिक हिंदू ने गांधी की हत्या कर दी और इस हत्या ने देश भर के मुसलमानों को सतर्क कर दिया। ऐसे समय में पंडित नेहरू और पटेल को चाहिए था कि वे हिंदू सांप्रदायिकता को कुचल देते किंतु दोनों की खींचतान जारी रही। सरदार पटेल की तुलना में नेहरू चालाक थे। नेहरू के मन में इस्लाम के प्रति अधिक प्रेम था तो अंबेडकर के मन में हिंदुत्व के प्रति आक्रोश। परिणाम हुआ कि संतुलन बनाने और अपनी राजनैतिक सत्ता को मजबूत रखने के लिए मुसलमानों को प्रोत्साहन और हिंदुओं को दबाने की नीति शुरू हुई। शरीफ हिंदू दबता गया तो चालाक हिंदू कम्युनिस्ट या कांग्रेसी बनकर सत्ता से तालमेल करने लगा। मुट्ठीभर सांप्रदायिक हिंदू चुपचाप स्वतंत्रता पूर्व का हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का खेल खेलना शुरू किए। इसी खेल में इन्होंने समान नागरिक संहिता, हिंदू राष्ट्र, अखंड भारत जैसे नारों को हथियार बनाया। जो लोग स्वतंत्रता संघर्ष से पूरी तरह दूरी बनाकर उस समय हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के गंदे खेल में सक्रिय थे वही लोग पंडित नेहरू और अंबेडकर की सत्ता लोलुपता के कारण फिर जीवन दान पाने में सफल हुए और उसी का परिणाम है आज की मोदी सरकार। स्पष्ट है कि 70 वर्षों तक हिंदुओं पर भारी अत्याचार हुए, कश्मीर समस्या को जिंदा किया गया, कश्मीरी पंडितों पर एकपक्षीय और राज्य समर्थित अत्याचार हुए, हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना कर रखा गया तब अंत में हिंदुओं ने समाप्त होने की अपेक्षा सांप्रदायिक होने को मजबूरी मानकर संगठित होना स्वीकार किया। अब भारत में हिंदुत्व दूसरी गुलामी से मुक्त हुआ। अब हिंदुत्व को संगठित इस्लाम से कोई खतरा नहीं है क्योंकि भारत में मोदी और संघ की मिली जुली सरकार है। मोदी पूर्व भारत के हिंदुत्व को संगठित होकर इस्लामिक मार्ग पर चलना पड़ा अब उसका दूर दूर तक अंदेशा नहीं है। मरणासन्न कांग्रेस और साम्यवाद से अब भी भारत का मुसलमान कुछ उम्मीद कर रहा है किंतु वैसा कुछ है नहीं। इस तरह भारत के हिंदुत्व के समक्ष संगठित इस्लाम व खतरा समाप्त हुआ किंतु अब हिंदुत्व के समक्ष वैचारिक इस्लाम का नया खतरा पैदा हो गया है। हिंदुत्व धर्म और राज्य का गठजोड़ उचित नहीं मानता परंतु इस नई स्वतंत्रता के बाद सांप्रदायिक हिंदू अब निरंतर उस दिशा में सक्रिय हैं। अब समान नागरिक संहिता की जगह हिंदू राष्ट्र की आवाज उछाली जा रही है। अब मुसलमानों को उसी तरह दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयत्न हो रहा है जिस तरह मोदी पूर्व हिंदुओं के साथ था। अब हिंदुत्व को गुण प्रधान हिंदुत्व छोड़कर संगठित हिंदुत्व की दिशा में ले जाने का प्रयत्न हो रहा है जो अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व का इस्लामीकरण है। अब भारत में हिंदुत्व को कोई खतरा नहीं है। अब उसे सुरक्षा की नीतियां बदलकर विस्तार का मार्ग शुरू कर देना चाहिए किंतु अब सांप्रदायिक तत्व हिंदुत्व को विस्तार की दिशा में नहीं जाने देना चाहते। हिंदुत्व के विस्तार के लिए हमें वैचारिक धरातल मजबूत करना होगा, विश्व को विचारो का निर्यात करना होगा किंतु अब भी हमारे साम्प्रदायिक भाई गाय, गंगा, मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दों तक ही चिपके रहना चाहते हैं।

संघ परिवार ने मोदी पूर्व हिंदुत्व की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया उसके लिए वह

बधाई

का पात्र है किंतु अब उसे अपनी हिंदू राष्ट्र की घातक मांग छोड़ कर समान नागरिक संहिता की मांग आगे करनी चाहिए। भारत का हर रहने वाला हिंदू है और उसमें हिन्दू मुसलमान का भेद नहीं है यह परिभाषा पूरी तरह अनावश्यक है क्योंकि यदि यह परिभाषा सही है तो फिर विश्व हिंदू किसे कहेंगे। भारत में हिंदू मुसलमान का ध्रुवीकरण घातक है क्योंकि इसी ध्रुवीकरण के परिणाम स्वरुप भारत का विभाजन हुआ और यह प्रयत्न फिर विभाजन का आधार बनेगा। भारत में मुसलमानों की संख्या बीस करोड़ हैं। आप उन्हें न हिंदू बना सकते हैं न समुद्र में फेंक सकते हैं न विदेश भेज सकते हैं। उन्हें समानता के आधार पर भारत में रखना ही होगा। यदि भारत से सारे मुसलमानों को निकाल भी दें तो भारत की चोरी, डकैती, बलात्कार, मिलावट, जातीय कटुता, श्रम शोषण, आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर इस ध्रुवीकरण को अनिश्चितकाल तक जारी रखने का क्या औचित्य है। सरकार मोदी की है। हिंदुत्व का संकट खत्म हिंदुत्व के विस्तार में सक्रिय होइये। अल्पकालिक इस्लाम का अनुकरण छोड़कर फिर से हिंदुत्व का मार्ग पकड़िए। हिंदुत्व कोई पंद्रह सौ या दो हजार वर्षों का धर्म नहीं है। इसका हजारों लाखों वर्ष का इतिहास है। अब तक उसे दाढ़ी वाले मुसलमानों से खतरा था अब उसे चोटी वाले मुसलमानों से बचना होगा।

मैं मानता हूॅ कि संगठित इस्लाम से हिंदू धर्म को खतरा नहीं किंतु धर्म को तो भारी खतरा है। सारे विश्व के लिए इस्लाम सबसे ज्यादा खतरनाक संगठन बना हुआ है। इस संकट के समाधान में हिंदुओं को सहायक होना चाहिए बाधक नहीं। हिंदू राष्ट्र की आवाज उस प्रयास में बाधक है। मुसलमान मानता है कि वह दुनियां में डेढ़ सौ करोड़ है जबकि हिंदू बहुत कम। अब उनका घमंड चूर करना होगा। बताइए कि मुसलमान दुनियां में डेढ़ सौ करोड़ है तो हम लोग दुनियां में छः सौ करोड़ है। तुम्हारा अस्तित्व ही नहीं रहेगा।

अंत में, मैं भारत के हिंदुओं से अपेक्षा करता हूॅ कि इस्लाम की नकल छोड़े, हिंदू राष्ट्र की जगह समान नागरिक संहिता का प्रयत्न करें, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर आंख बंद करके विश्वास करें और हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण के प्रयत्नों से दूर हो जाए। मैं मुसलमानों से भी उम्मीद करूंगा कि वे अब सामूहिक रूप से जान देकर भी भारत को दारुल इस्लाम बनाने का सपना देखना बंद कर दें, वे खुलकर हिंदू राष्ट्र का विरोध और समान नागरिक संहिता का समर्थन करें, नरेंद्र मोदी पर पूरा विश्वास करें। मुसलमान संगठन से दूरी बनाकर धार्मिक मुसलमान की दिशा में यदि एक कदम चले तो भारत का हिंदू दो कदम आगे आकर उन्हें गले लगाने के लिए तैयार मिलेगा।