इस्लाम कितनी समस्या और क्या समाधान
इस्लाम कितनी समस्या और क्या समाधान
मेरे विचार में पाॅच बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं- 1. इस्लाम एक संगठन है तथा हिन्दुत्व धर्म । 2. इस्लाम क्षत्रिय प्रवृत्ति प्रधान होता है जबकि हिन्दुत्व ब्राम्हण प्रवृत्ति प्रधान। 3. किसी क्षेत्र के दो प्रतिषत से अधिक लोग यदि किसी कार्य के लिये संगठित हो जाये तो उन्हे बलपूर्वक दबाना संभव नहीं होता। 4. भारतीय वातावरण में मजबूत से दबना तथा कमजोर को दबाना एक सांस्कृतिक पहचान बन चुकी हैं। 5. स्वतंत्रता के बाद धर्म निरपेक्षता के नाम पर लगातार हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा गया तथा इस्लाम को लगातार प्रोत्साहित किया गया।
उपरोक्त परिस्थितियों के आधार पर हमें इस्लाम की पहचान करनी होगी। यह सत्य है कि भारत में कुल मुस्लिम जनसंख्या दो प्रतिषत से कई गुनी अधिक है तथा लगभग संगठित भी हैं। ऐसी परिस्थिति में नई सरकार आने के बाद भी मुसलमानों से बदला लेने की प्रवृत्ति न तो उचित है, न ही न्याय संगत। क्योंकि सभी मुसलमान अपराधी प्रवृत्ति के नहीं है तथा उनकी जनसंख्या दो प्रतिषत से इतनी ज्यादा है कि उन्हें बलपूर्वक दबाना संभव नहीं है। परिस्थिति अनुसार समस्याओं के समाधान के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद अर्थात चारों का सहारा लिया जाता है। किसी एक की आवष्यकता तो आपातकाल में ही होती है। सामान्यतः सौभाग्य से भारत में सामान्य परिस्थितियाॅ हंै तथा नई सरकार आने के बाद तो निष्चित रुप से हैं ही।
सलमान खान ने एक टिप्पणी की जिसे तिल का ताड़ सिर्फ इसलिए बनाया गया क्योंकि वह मुसलमान था। ओबैसी ने हैदराबाद के कुछ आतंकियांे को कानूनी सहायता की बात कही। मैं नहीं समझता कि इस इस बात को इतना अधिक चर्चित करना क्यों आवष्यक था? मैं जानता हॅू कि ओबैसी की बात को बतंगड बनाने वाले अधिकांष लोगों ने प्रज्ञा पुरोहित के मामले में बिल्कुल यही आचरण किया था जो ओबैसी ने कहा है। किसी संदिग्ध अपराधी को सहायता करना अनैतिक कार्य है किन्तु उसका वकील, परिवार का सदस्य, मित्र अथवा संगठन से जुडा व्यक्ति सहानुभूति रख सकता है। ओबैसी ने तो अपने को कानूनी सहायता तक सीमित रखा था । इसी तरह भारतमाता की जय जैसे मुद्दे को भी अनावष्यक इतनी तुल दी गई। मुझे तो ऐसा लगा जैसे किसी सोची समझी रणनीति के अन्तर्गत संघ परिवार हिन्दू और मुसलमान के बीच साफ-साफ ध्रुर्वीकरण कराने के लिए ओबैसी का उपयोग कर रहा है तथा प्रयत्नषील है कि ओबैसी मुसलमानों का एक छत्र नेता बन जावे।
इसी तरह नागरिक संहिता के साथ भी साम्प्रदायिक खिलवाड़ किया जा रहा है। नागरिक संहिता का अर्थ आचार संहिता से बिल्कुल विपरीत होता है। आचार संहिता व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है तथा उसमें कोई नागरिक संहिता तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक किसी अन्य व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसकी स्वतंत्रता में बाधा न पहॅुचायी जाये। यदि कोई पुरुष या महिला आपसी सहमति से एक से अधिक विवाह करना चाहते है अथवा किसी के साथ अपना वैवाहिक संबंध तोड़ना चाहते है तो उसे कोई कानून किसी भी स्थिति में नहीं रोक सकता । यदि कोई पुरुष किसी महिला को एक ही बार में तलाक दे दें, और उसे अपने साथ न रखे तो कोई कानून उसे बाध्य नहीं कर सकता। कानून सिर्फ यही कर सकता है कि किसी महिला को भी एक ही बार में तलाक देने का अधिकार प्राप्त है। कौन किसके साथ रहना चाहता है और कब हटना चाहता है यह उसका आंतरिक मामला है। मुझे तो आचार्य धर्मेन्द्र की बात बहुत पसंद आयी जिसके अनुसार वे विवाह तलाक जैसे मुद्दों को कानून से बाहर रखने की बात कह रहे थे अर्थात ऐसा व्यक्तिगत कानून न हिन्दुओं के लिए लागू हो, न मुसलमानों के लिए, और न ही किसी अन्य के लिए । इसी तरह अन्य कानून भी तब तक सरकार के हस्तक्षेप से बाहर रहने चाहिए जब तक वे आपसी सहमति से तथा किसी अन्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव न डालते हों। समान नागरिक संहिता के विषय में कुछ साम्प्रदायिक हिन्दुओं ने यह भ्रम फैलाया है कि इसका मतलब हिन्दुओं के अनुसार ही मुसलमानोें को भी विवाह तलाक या अन्य रीतिरिवाज मानने के लिए बाध्य करना है। जबकि समान नागरिक संहिता का वास्तविक अर्थ मुसलमानों के ही समान हिन्दुओं को भी कानूनी जकडन से बाहर करना है अर्थात व्यक्तिगत मामले में आचरण की स्वतंत्रता देना है और सिर्फ संवैधानिक मामलों में समान व्यवहार का कानून बनाना है।
जिस तरह कुछ कट्टरपंथी मुसलमान मदरसों के द्वारा मुस्लिम बच्चों का ब्रेन बाष करके उन्हें साम्प्रदायिक बना देते है। हिन्दुओं की आबादी आर्थिक क्षमता तथा सोच में क्या कमी है कि हम उनमें से कुछ बच्चों का भी ब्रेन वाष करके उन्हें भारतीय मुसलमान नहीं बना पाते। कहीं न कहीं इसमें कोई भूल हैं।
साम्प्रदायिक मुसलमान और साम्प्रदायिक हिन्दू यदि आपस में टकराते है तो हमंे उस बीच में नहीं पडना चाहिए। लेकिन यदि शांतिप्रिय मुसलमानों के साथ कोई साम्प्रदायिक हिन्दू दुव्र्यवहार करता है तो हमें मुसलमान का साथ देना चाहिए। धु्रवीकरण हिन्दू और मुसलमान के बीच न होकर साम्प्रदायिक और शांतिप्रिय के बीच होना चाहिए। कोई भी गृहयुद्ध हिन्दुओं को ही ज्यादा नुकसान करेगा क्योकि हिन्दू एक धर्म है तथा इस्लाम एक संगठन। साथ ही यह बात भी विचारणीय है कि जब साम्प्रदायिक मुसलमान अपने आप गंभीर गलतियाॅ करेंगे ही तो हम मामूली गलतियाॅ को गंभीर सिद्ध करने की जल्दबाजी क्यों करें। जब हमारे समक्ष आजमखान तथा अकबरुद्दीन सरीखे लोग मौजूद है तो हम क्यों सलमान खान सरीखे लोगों को हाइ लाइट करें? अनावष्क मुद्दे उठाने से हमारी विष्वसनीयता संदिग्ध होती है तथा कही न कही हमारे अपने लोगों में फूट पड़ती है। जबकि हमारा उद्देष्य यह होना चाहिए कि फूट विपक्ष में बढ़े हमारे अंदर नहीं। वर्तमान समय में नरेन्द्र मोदी बिल्कुल ठीक दिषा में बढ रहे है तथा कहीं न कहीं संघ परिवार दुविधा में पडा हुआ है। एक ओर तो उसके अंदर मुसलमानों से उसी तरह बदला लेने की भावना बढ़ रही है जिस तरह उन लोगों ने 67 वर्षो तक हिन्दुओं के साथ किया। दूसरी ओर संघ परिवार यह भी समझ रहा है कि यदि वर्तमान राजनैतिक स्थिति पानी का बुलबुला सिद्ध हुई तो वह स्थिति भी हाथ से जाती रहेगी जो वर्तमान में हैं। मैं तो यह चाहता हॅू कि संघ परिवार चाहे जिस दिषा में जाये मेरे सरीखे लोगों को साम्प्रदायिकता के मामले में आॅख बंद करके नरेन्द्र मोदी की दिषा में साथ देना चाहिए। हमें साम्प्रदायिकता के विरुद्ध शांतिप्रिय विचारों को लगातार मजबूत करने का प्रयत्न करना चाहिए।
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