राजनीति के दस नाटक भाग तीन
पिछले लेख में हम स्पष्ट कर चुके हैं कि भारतीय राजनीति लोकतांत्रिक तरीके से समाज को गुलाम बनाने के लिये दस प्रकार के नाटक करती है । उन दस नाटकों में से वर्ग विद्वेष विस्तार, प्रत्येक व्यक्ति में अपराध भाव विस्तार और राज्य पर अधिकतम निर्भरता की चर्चा हो चुकी है । अन्य चार नाटकों पर हम आज चर्चा करेंगे ।
राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है कि वह निरंतर समस्याओं के समाधान में तो सक्रिय रहता है किन्तु किसी समस्या का समाधान नहीं होने देता । राज्य किसी भी समस्या का ऐसे तरीके से समाधान करता है जिसके बाई प्रोडक्ट के रूप में एक नई समस्या बढ़ने लगे । हमारे जिले में पहाड़ी कोरवा जाति के लोग भी रहते हैं । भारत सरकार मानती है कि इन कोरवा लोगों का इस तरह भौतिक विकास हो कि उनकी पुरानी संस्कृति में कोई बदलाव न हो । दुनियां को दिखाने के लिये उन्हें नमूने के रूप में रखा जाता है । उनकी आबादी बढ़ाने की पूरी कोशिश होती है । छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के बहुत बड़े भू भाग को भी इसी तरह नमूना बनाया गया । उनका भौतिक विकास शुरू हुआ तो परिणाम स्वरूप उनके रहन सहन भोजन भाषा पूजा पाठ में बदलाव स्वाभाविक था । सरकार ने बदलाव रोकने के नाम पर जो प्रयत्न किये उससे उनका भौतिक विकास रूका । आज तक दुनियां में कोई ऐसा तरीका नहीं बना जो दोनों का एक साथ समन्वय कर सके । यह कैसे सम्भव है कि भौतिक उन्नति भी हो और पिछड़े पन के अवरोध चिन्हों में बदलाव न हो । सरकार ने उस क्षेत्र में भौतिक उन्नति को रोका जिसका परिणाम है नक्सलवाद । सरकार ने आबादी नियंत्रण के लिये विवाह की उम्र बढ़ानी शुरू की । स्वाभाविक है कि उससे जन्म दर घटी । इसके बदले में बलात्कार बढ़ने लगे । अब बलात्कार एक बड़ी समस्या के रूप में स्थापित हो चुके हैं । आज तक भारत सरकार यह तय ही नहीं कर सकी कि वह महिला पुरूष के बीच दूरी घटाना चाहती है कि बढ़ाना चाहती है । वैश्यालय बन्द होंगे तो बलात्कार बढ़ेगे ही । भ्रष्टाचार और अत्याचार का भी मामला ऐसा ही है । स्वतंत्रता के बाद सत्तर वर्षों से सरकार दोनो दिशाओं में एक साथ सक्रिय है। स्थानीय स्तर से लेकर केन्द्र सरकार तक यही हाल है। यदि निजीकरण होगा तो भ्रष्टाचार हटेगा अत्याचार बढ़ेगा और सरकारीकरण होगा तो अत्याचार हटेगा भ्रष्टाचार बढ़ेगा । हमारे छोटे से शहर की नगरपालिका की स्थानीय इकाई में भी मैंने कई बार यह उलटफेर देखा है । यदि बेरियर टैक्स की नीलामी होती है तो नगरपालिका को पैसा बहुत मिलता है किन्तु कर्मचारी परेशान हो जाते हैं । यदि बेरियर की वसूली नगरपालिका का विभाग करता है तब कोई शिकायत नहीं होती किन्तु नगरपालिका की आमदनी बहुत कम हो जाती है । हर पांच दस वर्ष में नीति बदलती है । आज तक किसी एक मार्ग का निपटारा नहीं हो सका । भारत के सभी विभागों के अधिकांश मामलों में इसी तरह विपरीत मार्गों पर एक साथ काम चलता रहता है और लगता है कि अनन्त काल तक चलता रहेगा ।
आम नागरिकों को भ्रम में रखने के लिये भारतीय राजनीति एक नये शस्त्र का उपयोग करती है । कुल समस्यायें तीन प्रकार की होती हैः- 1. आपराधिक 2. सामाजिक बुराइयां 3. आर्थिक । तीनों समस्याओं के समाधान का तरीका भी अलग-अलग होता है । आपराधिक समस्याओं का प्रशासनिक, सामाजिक समस्याओं का सुधारात्मक तथा आर्थिक समस्याओं का अर्थनीति में बदलाव ही अच्छा समाधान माना जाता है । भारतीय राजनीति हर समस्या के समाधान में सक्रिय दिखना तो चाहती है किन्तु समाधान होते हुये नहीं देखना चाहती । हमारी राजनैतिक व्यवस्था प्रशासनिक समस्याओं का आर्थिक सामाजिक समाधान करने का प्रयास करती है । चोरी, डकैती, लूट, हिंसा, बल प्रयोग, आतंकवाद जैसी आपराधिक समस्याओं का प्रशासिक समाधान न करके उनका हृदय परिवर्तन कराने की कोशिश होती है । नक्सलवादियों का हृदय परिवर्तन और आर्थिक विकास की मूर्खता पूर्ण पहल की जाती है । ऐसे गंभीर आपराधिक मामलों में भी न्यायिक प्रक्रिया बाल की खाल निकालती है । ऐसे सभी मामलों में दोष सिद्धि का दायित्व पुलिस पर डाल दिया जाता है । ऐसे आपराधिक मामलों में मानवता के बहुत ऊँचे मापदण्डों का पालन होता है । जेलों में अपराधियों को साधु संतों के प्रवचन सुनवाये जाते हैं । दूसरी ओर सामाजिक मामलों में प्रशासनिक प्रक्रिया अपनाई जाती हैं । दहेज, छुआछूत, गांजा, शराब, पारिवारिक महिला उत्पीड़न, सतीप्रथा, बालश्रम आदि अनेक ऐसी समस्याएं हैं जो जरा भी आपराधिक नहीं है । ये सभी समस्याएं पूरी तरह सामाजिक कुप्रथाएं हैं जिनका सबसे अच्छा समाधान है हृदय परिवर्तन या सामाजिक बहिष्कार । हमारी सरकारें चम्बल के डाकुओं का हृदय परिवर्तन करती हैं तो बिहार के शराबियों को जेल में बन्द करके रखा जाता है । सामाजिक कुरीतियों का समाधान सामाजिक बहिष्कार से ही संभव है । उसके लिये सामाजिक जन जागृति चाहिये । सरकार बिल्कुल विपरीत कार्य करती है । सती प्रथा कोई अपराध नहीं है किन्तु सौ वर्ष से सती प्रथा रोकने की व्यर्थ की कसरत की जा रही है । मैं आज तक नहीं समझ सका कि गांजा और आतंकवाद में से गांजा को इतना गंभीर क्यों माना जाता है कि गांजा या आदिवादी कानून में निर्दोष सिद्ध होने का दायित्व आरोपी पर है किन्तु हत्या, बलात्कार आतंकवाद में निरपराध सिद्धि का दायित्व आरोपी का नहीं है । बलात्कार अपराध है और वैश्यावृत्ति सामाजिक बुराई । वैश्यावृत्ति रोकने के लिये विचार प्रचार का सहारा लेना चाहिये किन्तु बार बालाओं का डांस या वैश्यावृत्ति रोकने के प्रशासनिक मार्ग का सहारा लिया जाता हैं ।
आर्थिक समस्याओं का सिर्फ आर्थिक तरीके से समाधान होना चाहिये किन्तु इसके लिये भी प्रशासनिक मार्ग खोजा जाता है । ब्लैक करना कोई अपराध नहीं है किन्तु मूल्य वृद्धि को रोकने के कानूनी प्रावधान किये जाते हैं । मूल्य वृद्धि को उत्पादन बढ़ाकर या आयात करके रोकना सहज मार्ग है किन्तु सरकारें उसके लिये कानूनी मार्ग अपनाती हैं । इससे कई समस्याएं पैदा होती हैं । मूल्य वृद्धि पर कानूनी रोक से भ्रष्टाचार बढ़ता है, वस्तु की गुणवत्ता घटती है तथा उत्पादन पर भी बुरा असर होता है । साठ वर्षो में इसका भारत में प्रत्यक्ष प्रभाव हुआ । भारत उत्पादन में बहुत पीछे चला गया । हम निजी क्षेत्र को निरूत्साहित करते रहे । इससे बेरोजगारी बढ़ी । भारत दुनियां की तुलना में अच्छे स्कूल, अच्छे कालेज, अच्छे अस्पताल खोलने में पिछड़ गया क्योंकि हमने आर्थिक स्वतंत्रता की जगह आर्थिक मामलों में भी प्रशासनिक हस्तक्षेप बढ़ाया । रोजगार के लिये सबसे अच्छा माध्यम है कि बाजार में श्रम की मांग बढ़े किन्तु भारत ने रोजगार को सरकारी नौकरी और शिक्षा के साथ जोड़ने की भूल कर दी । शिक्षा कभी रोजगार पैदा नहीं करती बल्कि रोजगार का रूपान्तरण करती है किन्तु भारत ने सरकारीकरण को प्रोत्साहित करने के चक्कर में यह गलती की । हमें आवागमन को मंहगा करना चाहिये था और लघु उद्योगों को बढ़ने देना चाहिये था किन्तु भारत में उल्टा हुआ । आवागमन सस्ता हुआ और लघु उद्योग बन्द होते गये । यदि भारत में सरकारीकरण को सिर्फ निर्यात इकाइयों तक सीमित करके अन्य सब आर्थिक गतिविधियां स्वतंत्र कर देते तो आज भारत आर्थिक रूप से मजबूत रहा होता । आज भी मोदी सरकार बहुत धीरे-धीरे आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में बढ़ रही है । इस संबंध में सरकार को बहुत तेज गति करनी चाहिये । आर्थिक समस्याओं का कभी प्रशासनिक समाधान नहीं सोचना चाहिये ।
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