नशा और शराब पर प्रतिबंध
यदि बहुत व्यापक अर्थों पर विचार करें तो नशा कई प्रकार का माना जाता है। एक नशा तो वह होता है जो बाहर की वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति की मानसिक शारीरिक स्थिति को असंतुलित कर देता है तो दूसरा वह होता है जो व्यक्ति की स्वयं की आंतरिक सोच ही उसके मानसिक स्तर को असंतुलित कर देती है । पहले प्रकार के नशा में शराब, तम्बाकू, गांजा, भांग, चरस, अफीम, हेरोइन आदि प्रमुख माने जाते हैं तो दूसरे प्रकार के नशा में धन, प्रसिद्धि, विद्वत्ता, पद आदि के घमंड को नशा कह दिया जाता है । हम पहले प्रकार के नशा तक अपनी चर्चा को सीमित कर रहे हैं ।
नशा के लिए जिन चीजों का उपयोग किया जाता है उनका प्रभाव अलग-अलग वस्तुओं का अलग-अलग होता है । एलएसडी, हेरोइन आदि को सर्वाधिक घातक नशा माना जाता है तो अफीम, गांजा, भांग को कम घातक । शराब और तम्बाकू को और भी कम घातक माना जाता है । एलएसडी, हेरोइन आदि शारीरिक और मानसिक प्रभाव दोनों क्षेत्रों में व्यापक हानिकारक हैं तो गांजा, भांग शारीरिक कम मानसिक प्रभाव अधिक डालते हैं और तम्बाकू या शराब शारीरिक अधिक और मानसिक प्रभाव कम डालते हैं यद्यपि किसी भी प्रकार के नशा से शारीरिक मानसिक दोनों प्रकार का नुकसान होता ही है ।
हम अपनी चर्चा को शराब तक सीमित करें । सम्पूर्ण विश्व में नशा के रूप में सबसे अधिक शराब का प्रयोग होता है । आदर्श काल में भी नशा के रूप में शराब का उपयोग होता था और वर्तमान समय में भी । प्राचीन समय में भी शराब को उतना ही घातक माना जाता था जितना आज । उस समय भी शराब से मुक्ति के व्यापक प्रयत्न किए जाते थे तो आज भी उतने ही व्यापक प्रयत्न होते हैं । हर धर्मगुरु, सामाजिक चिन्तक शराब के विरुद्ध व्यापक प्रचार करता है तथा सरकार भी चाहती है कि शराब बंद हो किंतु सारे प्रयत्नों के बाद भी शराब पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । शराब की खपत लगभग स्थिर बनी रहती हैं ।
शराब की आदत व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक सब प्रकार का प्रत्यक्ष नुकसान करती हैं । एक दो प्रतिशत बिरले लोग ही शराब को दवा के रूप में प्रयोग कर पाते हैं अन्यथा निन्यान्नवे प्रतिशत लोग शराब को नशा के रूप में ही प्रयोग करते हैं । शराब व्यक्ति के रक्त संचार पर तत्काल और व्यापक प्रभाव डालती हैं । व्यक्ति का रक्त संचार एकाएक बढ़कर सक्रिय हो जाता है । शरीर में शक्ति बढ़ जाती है तथा भावनात्मक शक्ति अधिक सक्रिय किंतु बौद्धिक क्षमता असंतुलित हो जाती हैं । व्यक्ति सोच नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं । वह एक दिशा में अनियंत्रित चलना शुरू कर देता है । शराब के विषय में यह आम धारणा है कि वह किसी अच्छी दिशा में कम और गलत दिशा में अधिक सक्रिय करती हैं। स्पष्ट है कि शराब को गांजा भांग की तुलना में अधिक गलत माना जाता है ।
बताया जाता है कि शराब पीते ही व्यक्ति में शक्ति और उत्तेजना की मात्रा बढ़ जाती है । उससे व्यक्ति को अपनी क्षमता और सुख का अहसास बढ़ जाता है । शराब पीने के बाद व्यक्ति की क्षमता और उत्तेजना में जितनी मात्रा की बढ़ोतरी होती है उससे थोड़ी सी अधिक मात्रा नशा उतरते की कम हो जाती हैं । इस तरह धीरे-धीरे व्यक्ति की मौलिक क्षमता कम होते होते उस स्थिति तक आ जाती हैं जहां तक वह शराब पीने के बाद पहुंच पाता है । शराब शुरू करने के पूर्व व्यक्ति की क्षमता चौंतीस थी तो शराब पीने के बाद बढ़कर अड़तालीस हुई और नशा उतरते ही साढ़े तेंतीस हो गई । कुछ वर्ष बाद बिना शराब के उसकी क्षमता घटकर बाइस और शराब पीने के बाद में चौंतीस हो जाती हैं । साथ में लीवर पर भी दुष्प्रभाव होता ही है । आर्थिक स्थिति पर व्यापक दुष्प्रभाव होता है तथा सामाजिक प्रतिष्ठा गिरती ही है । सबसे अधिक घातक यह है कि सब कुछ अच्छी तरह समझने और अनुभव करने के बाद भी व्यक्ति इस आदत को नहीं छोड़ पाता । यदि और मामलों में किसी तरह से रोक भी लें तो उसके शारीरिक संबंध बनाने में उत्तेजना की कमी उसे पुनः शराब पीने को मजबूर कर देती है । स्पष्ट है कि व्यक्ति सब कुछ समझते हुए भी शराब की आदत को नहीं छोड़ पाता।
शराब का व्यापक दुष्प्रभाव परिवार राष्ट्र तथा समाज की प्रगति पर पड़ता है । जिस परिवार का एक सदस्य शराब पीने लगा उस परिवार की प्रगति पर बहुत बुरा प्रभाव निश्चित है । राष्ट्र की प्रगति पर भी बहुत नुकसान होता ही है किन्तु आज तक कोई ऐसा मार्ग नहीं निकला जो शराब पर नियंत्रण के लिये प्रभावशाली हो । सभी प्रमुख धर्मगुरूओं ने शराब बन्दी को एक अनिवार्य आवश्यकता माना । कुछ आंशिक प्रभाव भी पड़ा किन्तु धीरे-धीरे शराब का विषय नेपथ्य में चला गया । गांधी ने शराब बन्दी को बहुत महत्वपूर्ण माना । गांधी के बाद हमारी सरकारों ने शराब बन्दी के उद्देश्य से शराब पर भारी टैक्स लगाये । अब सरकार का उद्देश्य उलट गया । अब सरकारी बजट बढ़ाने के उद्देश्य से शराब को माध्यम मान लिया गया । मुरार जी ने भरपूर प्रयास किया और नीतिश कुमार ने भी इस संबंध में बहुत हिम्मत की किन्तु जिस तरह शराबी सब कुछ समझने के बाद भी पीने को मजबूर हो जाता है उसी तरह हमारी सरकारें भी सब कुछ समझते हुये भी शराब को जारी रखने को मजबूर हो जाती हैं। सरकारें एक तरफ तो शराब बन्दी का नाटक भी जारी रखती हैं तो दूसरी ओर शराब बन्द होते हुये भी नहीं देख सकती । धर्म गुरूओं का आंशिक प्रभाव पड़ता है । हमारे आदिवासी बहुल जिले में हमारे दो आदिवासी संत गहिरा गुरू जी तथा राजमोहिनी देवी ने बड़ी संख्या में आदिवासियों को शराब से दूर किया किन्तु उनके जाने के बाद कोई अन्य प्रभावशाली धर्मगुरू नहीं निकल सका जिसका व्यापक प्रभाव पड़े ।
शराब एक सामाजिक बुराई है किन्तु वर्तमान समय में कुछ चालाक लोग इस बुराई से लाभ भी उठाने का प्रयास कर रहे हैं। शराब व्यक्ति को व्यक्तिगत और संबद्ध लोगों की सीमा तक बुरा प्रभाव डालती है किन्तु शराब अपराध वृत्ति को प्रोत्साहित नहीं करती जैसा आमतौर पर प्रचारित किया जाता है। शराबी नासमझ और मूर्ख तो हो सकता है किन्तु धूर्त नहीं हो सकता क्योंकि धूर्तता के लिये जिस चंचल मस्तिष्क की जरूरत है वह मस्तिष्क ही शराब से कमजोर हो गया है। शराबी गलती कर सकता है किन्तु अपराध नहीं कर सकता।
जो लोग शराब नहीं पीते वे इन शराबियों को शराब पिलाकर इनका अपराधों के लिये उपयोग करते हैं । बदनामी शराबी की होती है, दण्ड शराबी भुगतता है और लाभ शराब न पीने वाले को होता है। मैंने देश भर के अनेक पिछड़े क्षेत्रों का भ्रमण किया । इन पिछड़े क्षेत्रों में शराब, अशिक्षा और गरीबी का व्यापक प्रभाव है तो इन क्षेत्रों के लोग अधिक ईमानदार सच बोलने वाले शरीफ और मानवता का व्यवहार करने वाले हैं । अनेक शिक्षित, शराब नहीं पीने वाले, सम्पन्न लोग स्वयं को विकसित कहकर इन ईमानदार शरीफ लोगों को बैकवर्ड कहते हैं । ये लोग इनकी लंगोटी तक उतरवाने का प्रयास करते हैं क्योंकि वर्तमान परिभाषा में शराबी बैकवर्ड है और धूर्त फारवर्ड ।
शराब रोकने में हृदय परिवर्तन ही कुछ कारगर हो सकता है । कानून से शराब नहीं रूक सकती क्योंकि शराब का जारी रहना सत्ता की आवश्यकता बन चुकी है । दूसरी बात यह भी है कि शराब कोई अपराध तो है नहीं जिसे सरकार प्राथमिकता माने । शराब एक सामाजिक बुराई है जिसे दूर करना समाज का काम है, सरकार का नहीं । नीतिश कुमार जी ने शराब रोकी और मैंने उसे गलत माना । जो सरकार बिहार में हत्या डकैती, बलात्कार नहीं रोक पा रही, जिस बिहार में अपराधी दुकान खोलकर हत्या का ठेके लेते हुये देखे जाते हैं उस बिहार की सरकार शराब बन्दी को प्राथमिकता माने यह ठीक नहीं। किसी भी सरकार का दायित्व सिर्फ सुरक्षा और न्याय है। उसका काम तम्बाकू रोकना नहीं। असफल सरकारें ही प्राथमिकताएं बदलती हैं। मुख्य रूप से यह काम है धर्म गुरूओं का। हमारे देश के प्रमुख धर्मगुरूओं ने भी यह समझ लिया है कि अब समाज पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। इसलिये सभी धर्मगुरू यह मांग करते हैं कि सरकार शराब बन्दी करे। गांव गांव में आपको सरकार से शराब बन्दी की मांग करने वाले मिल जायेंगे। सरकार शराब बन्द करेगी नहीं और धर्मगुरूओं समाज सेवकों का सम्मान भी बचा रह जायेगा ।
समाज में आमतौर पर शराब पीने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है । उनसे घृणा की जाती है । परिणाम यह होता है कि उनका अपराधियों से सम्पर्क हो जाता है । अपराधियों को मूर्ख शराबी चाहिये और हम उन्हें दुत्कारते हैं । मेरे विचार से हमारी नीयत ठीके होते हुये भी वर्तमान परिस्थिति में रणनीति गलत है । हम उन्हें प्रेम से समझा सकते हैं किन्तु डाटना या घृणा करना घातक हो सकता है ।
यह निश्चित है कि शराब बहुत घातक है तथा बन्द होनी चाहिये । सरकार की नीयत ठीक नहीं और धर्म गुरूओं का प्रभाव कम हो गया । ऐसी विषम परिस्थिति में उम्मीद की एक मात्र किरण है परिवार व्यवस्था । यदि परिवार को महत्वपूर्ण शक्ति मिले तो परिवार शराब को अनुशासित कर सकता है । जब से परिवार व्यवस्था को कमजोर करके सारा काम सरकार ने लिया है तब से यह समस्या अनियंत्रित होती जा रही है । परिवारों को संवैधानिक मान्यता मिले, समाज को बहिष्कार का अधिकार मिले और सरकार इस दायित्व से हट जाये तो संभव है कि इस बुराई से मुक्ति मिले । शराब एक बहुत बड़ी बुराई है, इसे प्राथमिकता के आधार पर दूर होना चाहिये किन्तु यह एक सामाजिक बुराई है, आपराधिक प्रवृत्ति नहीं इसलिये सरकार को शराब बन्दी से दूर रहना चाहिये ।
Comments
posted a New activity comment 19/09/2021 8:51:54 AM
SWAGAT HAI IS SAMBANDH MEIN MERA SUJHAV HAI KI JAN SAMANYA KE SWAVIVEK KO JAGRIT KIYA JAY