फिजूल की चर्चा में फंसी है राजनीति GT 447
फिजूल की चर्चा में फंसी है राजनीति
पिछले लेख में हमने भारत के लोकतंत्र पर चर्चा की। आप अच्छी तरह देख रहे होंगे कि भारत का लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। 20 दिनों से भी अधिक समय से लोकतंत्र अरविंद केजरीवाल-अरविंद केजरीवाल का खेल खेल रहा है, न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों ही महीने भर से इस खेल में संलग्न है। कितना गंदा लोकतंत्र है कि कई दिनों से इस बात पर चर्चा हो रही है कि अरविंद केजरीवाल जेल में रहकर आम और मिठाई खा सकते हैं या नहीं खा सकते हैं। सरकार के और विपक्ष के सभी बड़े नेता इसी बात में दिन-रात लगे हुए हैं। दिल्ली सरकार के मंत्री भी लगातार यह बोल रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की जेल में हत्या करने की योजना है। साफ तौर पर दिख रहा है कि यह बात पूरी तरह झूठ है लेकिन इस बात को बार-बार दोहराया जा रहा है। अभी कुछ दिनों पहले ही यह बात प्रचारित की गई थी कि अरविंद केजरीवाल का जेल में तीन दिनों में ही 4 किलो वजन घट गया है लेकिन जल्दी ही यह बात झूठ निकली। अरविंद केजरीवाल को जेल में 20 दिन हो गए हैं और 1 किलो भी वजन नहीं घटा है। मैं नहीं समझ पा रहा कि इतना सफेद झूठ बोलने की आवश्यकता क्या है? मुझे यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि अरविंद केजरीवाल जेल में रहकर मिठाई ही क्यों खाना चाहते हैं? और न्यायालय को इसमें क्यों दिक्कत होनी चाहिए? अब न्यायालय सारे मुकदमे छोड़कर सिर्फ इस बात पर विचार करेगा कि जेल में मिठाई खाने देना है या नहीं खाने देना है? यह हमारे लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ सारा काम छोड़कर इस बेहूदी चर्चा में संलग्न है और देश मीडिया के माध्यम से तमाशा देख रहा है। तनिक भी शर्म नहीं आती है हमारी विधायिका न्यायपालिका और कार्यपालिका को जो इस गंदी चर्चा को इतना महत्वपूर्ण समझ रहे हैं।
भारत की जनता खेतों में मेहनत करती है, कल कारखानों में काम करती है, दिन-रात पसीना बहाती है और यह सब करने के बाद जो हम टैक्स के रूप में सरकार को पैसा देते हैं, उस पर हमारे लोकतंत्र के तीनों स्तंभ इस बात पर मजा लेते हैं कि जेल में क्या खाना है और क्या नहीं खाना। अब यह भी एक न्यायालय निर्णय देगा, बेशर्म लोग अपील करेंगे फिर वह निर्णय देगा फिर बेशर्म लोग उच्च न्यायालय जाएंगे। उच्च न्यायालय और हमारा मंत्रिमंडल यही खेल खेलते रहेगा और हम खेतों में मेहनत कर करके इन लोगों को टैक्स के रूप में अपना खून पसीने की कमाई देते रहेंगे। अब समय आ गया है कि इस गंदे लोकतंत्र में सुधार किया जाए, बदलाव किया जाए, कोई नई व्यवस्था लाई जाए और इस गंदे लोकतंत्र से पिंड छुड़ाया जाए।
Comments