उनकी राजनीतिक शैली तीन प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित प्रतीत होती है।
हम आज बिहार चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं।
पिछले दो–तीन वर्षों में देशभर में जो राजनीतिक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अपनी वर्तमान नीतियों और रणनीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। उनकी राजनीतिक शैली तीन प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित प्रतीत होती है।
1️पहला सिद्धांत — बार-बार दोहराया गया कथन प्रभाव डाल सकता है
यह माना जाता है कि यदि किसी बात को लगातार और सामूहिक रूप से दोहराया जाए, तो वह लोगों के बीच स्वीकार्यता पा सकती है। लेकिन यह तभी संभव है जब वक्ता की विश्वसनीयता मजबूत हो। यदि विश्वसनीयता कमजोर हो जाए, तो सत्य भी प्रभाव नहीं डाल पाता। यही वह स्थान है जहाँ राहुल गांधी को राजनीतिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है—उनकी सार्वजनिक विश्वसनीयता अपेक्षित स्तर पर नहीं बन पा रही है।
2️ दूसरा सिद्धांत — सामाजिक समूहों की एकजुटता का चुनावी गणित
राहुल गांधी लंबे समय से इस मान्यता पर काम करते रहे हैं कि कुछ समुदाय चुनावों में अधिक संगठित रूप से मतदान करते हैं, जबकि बहुसंख्यक समाज में यह एकजुटता कम दिखाई देती है। लेकिन हाल के वर्षों में बदलते सामाजिक वातावरण ने यह समीकरण बदल दिया है।
जब किसी बड़े समूह को यह महसूस होता है कि उसके हित चुनौती में पड़ सकते हैं, तो वह भी एकजुट होने लगता है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यही मनोविज्ञान कार्य कर रहा है, और राहुल गांधी इस परिवर्तन का आकलन समय पर नहीं कर पाए। इससे उनकी रणनीति प्रभावी नहीं रही।
3️ तीसरा सिद्धांत — संस्थाओं पर तीखी आलोचना से दबाव बनाना
राहुल गांधी यह समझते हैं कि यदि किसी संस्था या प्रभावशाली व्यक्ति की लगातार आलोचना की जाए, तो वह दबाव में आ सकता है। इसी दृष्टिकोण से वे चुनाव आयोग, मीडिया, उद्योग जगत और न्यायपालिका सहित कई संवैधानिक एवं सार्वजनिक संस्थाओं पर कठोर टिप्पणी करते रहे हैं।
लेकिन इसका परिणाम उल्टा हुआ—लगातार आक्रामक रुख ने इन संस्थाओं को और अधिक सतर्क तथा विपक्ष से दूरी बनाने के लिए प्रेरित किया, जिससे विपक्ष की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है।
मेरे विचार से यही तीन प्रमुख कारण हैं जिनकी वजह से वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी और व्यापक विपक्ष को नुकसान उठाना पड़ रहा है, और इसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ रहा है।
आज की चुनाव-चर्चा को हम यहीं समाप्त करते हैं।
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