अब स्वराज का बिगुल बाजा दो

क्रान्ति द्वार पर

अब स्वराज्य का बिगुल बजा दो जाग उठी तरूणाई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        कौन चलेगा आज देष से भ्रष्टाचार मिटाने को,

                        राजनीति के पंख कतरने, सत्ता से टकराने को,

आज देख लें कौन सजाता, मौत के संग सगाई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        पर्वत की दीवार कभी, क्या रोक सकी तूफानों को,

                        क्या बन्दूकें रोक सकी है, बढ़ते हुये जवानों को,

चूर-चूर हो गई शक्ति वह, जो हम से टकराई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        सावधान, पद या पैसे से, होना है गुमराह नहीं,

                        सीने पर गोली खाकर भी, निकले मुंह से आह नहीं,

ऐसे वीर जवानों ने ही, देष की लाज बचायी है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        लाख-लाख झोपड़ियों में तो छाई हुई उदासी है,

                        सत्ता संपत्ति के बंगलों में हंसती पुरनमासी है,

यह सब अब ना चलने देंगे, हम ने कसमें खाई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        बदल जाय संपूर्ण व्यवस्था यही हमारी चाह है,

                        संविधान संषोधित होवें, यही हमारी राह है,

संविधान संषोधन से प्रारंभ हुई ये लड़ाई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।

                        आओ कृषक, श्रमिक, नागरिकों परिवर्तन का नारा दो,

                        गुरूजन, षिक्षक बुद्धिजीवियों, अनुभव भरा सहारा दो,

फिर देखें हम राजनीति कितनी बर्बर बौराई है।

परिवर्तन के लिये साथियों क्रान्ति द्वार पर आई है।।